Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * निर्जरातत्व * निर्जरातत्त्व | अणसमूणोरिया, वित्तीसंखेवणं रसचाओ । कायकिलेसो संलीणया, य बज्को तवो होइ ॥ ३४॥ (६३) "इस गाथा में छह प्रकार का बाह्य तप कहा है ।" अनशन, ऊनोदरता, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, कायक्लेश और संलीनता, ये छह प्रकार के बाह्य तप हैं ||३४|| (१) आहार का त्याग, 'अनशन' कहलाता वह दो प्रकार का है; 'इत्वर' और 'यावत्कथिक' । चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम आदि तप, 'इत्वर' कहलाता है और जब तक जीवे तब तक आहार का त्याग 'यावत्कथिक' तप कहलाता है । (२) आहार कम करना, 'ऊनोदरता' तप कहाता है। For Private And Personal (३) वृत्तिका - जीवन के निर्वाह की चीजों का संक्षेप करना, 'वृत्तिसंक्षेप' तप है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से चार प्रकार का यह तप है 1 (४) दूध, घी, तेल, दही, गुड़, तली हुई चीजें श्रादिका

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