Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (५६) * नवतश्व * (२२) सम्यक्त्व जैनसिद्धान्त, देव, गुरु, धर्म मादि जिनोपदिष्ट पदार्थों में सन्देह न करे । खंती मद्दव अज्जव, ___ मुत्ती तव संजमे अबोधब्बे । सच्चं सोनं आकिं-, चणं च बंभं च जइधम्मो ॥२६॥ "इस गाथा में दस प्रकार के यति धर्म का वर्णन है । क्षमा, मार्दव, प्रार्जव, मुक्ति (सन्तोष), तप, संयम, सत्य, शौच, अकिञ्चनत्व और ब्रह्मचर्य, ये दस यति के धर्म हैं ॥२६॥ सब प्राणियों पर समान दृष्टि रखने से क्रोध नहीं होता । क्रोधका न होना, 'क्षमा' कहाती है। अहङ्कारका त्याग, 'मार्दव' कहाता है । कपट न करना, 'आर्जव' कहाता है। लोभ न करना 'मुक्ति' कहोती है । इच्छाका निरोध, 'तप' कहाता है । बाह्य और अभ्यन्तर भेद से बारह प्रकार का तप है। प्राणातिपातादि (हिंसा आदि ) का त्याग, 'संयम' कहाता है। For Private And Personal

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