Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * नवतरख * ००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० निगोदके जीव, सूक्ष्म शरीरवाले होते हैं। (३) जिस कर्मसे अपनी पर्याप्तियां पूरी किये बिना ही जीव मर जावे, उसे 'अपर्याप्त नामकर्म कहते हैं। (४) जिस कर्मसे अनन्त जीवों को एक शरीर मिले, उसे 'साधारण' नामकर्म कहते हैं । जैसे:---आलू, जमीकन्द आदिके जीव। (५) जिस कर्मसे कान, भोंह, जीम आदि अवयव अस्थिर होते हैं; उसे 'अस्थिर' नामकर्म कहते हैं। (६) जिस कमसे नाभिके नीचेका भाग अशुभ हो, उसे 'अशुभ' नामकर्म कहते हैं। __(७) जिस कर्मसे जीव किसीका प्रीतिपात्र न हो, उसे 'दुर्भग' नामकर्म कहते हैं। ____ (८) जिस कर्मसे जीवका स्वर सुनने में बुरा लगे, उसे 'दुःस्वर' नामुकर्म कहले हैं। ___() जिस कर्मसे जीवका वचन, लोगोंमें माननीय न हो, उसे 'अनादेय' नामकर्म कहते हैं । (१०) जिस कर्म से लोकमें अपयश और अपकीर्ति हो, उसे 'अयशकीर्ति' नामकर्म कहते हैं। For Private And Personal

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