Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (४४) www.kobatirth.org * नवतस्त्र तीनयोगः - मनयोग, वचनयोग और काययोग । गिरणीया, पाउसिया पारितावणी किरिया । काइ पाणाइवाइरंभित्र, Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir परिग्गहिया मायवतीया ॥ २२ ॥ "इस गाथा में तथा आगे की दो गाथाओं में पचीस क्रियाओं के नाम है ।" कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी, आरम्भिको, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्य यिको ||२२|| (१) असावधानी से शरीर के व्यापार से जो क्रिया लगती है उसे 'कायिकी' कहते हैं । (२) 'जिस क्रिया से जी मरकमें जाने का अधिकारी होता है उसे 'अधिकरणिकी' कहते हैं। जैसे खड्ग श्रादिसे जीवकी हत्या करना । ऊपर द्वेष करनेसे (३) जीव तथा श्रजीवके 'प्राद्वेषिकी' क्रिया लगती है । (४) अपने आपको और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने से 'पारितानिकी' क्रिया लगती है । For Private And Personal

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