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* नवतस्त्र
तीनयोगः - मनयोग, वचनयोग और काययोग । गिरणीया, पाउसिया पारितावणी किरिया ।
काइ
पाणाइवाइरंभित्र,
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परिग्गहिया मायवतीया ॥ २२ ॥
"इस गाथा में तथा आगे की दो गाथाओं में पचीस क्रियाओं के नाम है ।"
कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातिकी, आरम्भिको, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्य यिको ||२२||
(१) असावधानी से शरीर के व्यापार से जो क्रिया लगती है उसे 'कायिकी' कहते हैं ।
(२) 'जिस क्रिया से जी मरकमें जाने का अधिकारी होता है उसे 'अधिकरणिकी' कहते हैं। जैसे खड्ग श्रादिसे जीवकी हत्या करना ।
ऊपर द्वेष करनेसे
(३) जीव तथा श्रजीवके 'प्राद्वेषिकी' क्रिया लगती है ।
(४) अपने आपको और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने
से 'पारितानिकी' क्रिया लगती है ।
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