Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir *नवतत्व * aar.mon __ एकेन्द्रिय जीव के हैं, जिन्हें सिर्फ शरीर हो, जैस:पृथ्वीकाय, जल काय, तेजःकाय, वायुकाय और वनस्पति काय के जीव । द्वीन्द्रिय जीव वे हैं, जिन्हें सिर्फ शरीर और जीम हो जैसे:-केंचुआ, जोंक शंख आदि के जीव । त्रीन्द्रिय जीव वे हैं, जिन्हें सिर्फ शरीर,जीभ और नाक. हो, जैसे:-चोंटी, खटमल, जू',इन्द्रगोप (बरसाती लाल रंग के कीड़े) आदि जीव । चतुरिन्द्रि य जीव वे हैं, जिन्हें सिर्फ शरीर, जीभ,नाक और अांख हो जैसे:-बिच्छू, भौंरा, मक्खी, मच्छर श्रादि । पंचेन्द्रिय जीव वे हैं, जिन्हें शरीर, जीभ, नाक, आँख और कान हो, जैसे:-देव, मनुष्य, पशु, पक्षी श्रादि । ___ काय का मतलब है शरीर, जिनका शरीर सिर्फ पृथ्वी का हो, वे पृथ्वीकाय; जिनका शरीर सिर्फ जल का हो वे जलकाय (अपकाय), जिनका शरीर सिर्फ तेजका हो,वे तेजः काय ( अग्नि काय); जिनका शरीर सिर्फ वायु का हो, वे वायुकाय; शाक, भाजी, फल, फूल आदि का जिनका शरीर हो, वे वनस्पतिकाय कहलाते हैं। पृथ्वोकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय,वनस्पतिकाय और त्रस काय,इनको 'षडजोवनिकाय (छकाय)कहते हैं। For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107