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• पापतत्व *
(३६)
(६३) जिस कर्भसे जीवको एकेन्द्रिय जाति मिले, उसे 'एकेन्द्रियजाति' पापकर्म कहते हैं इसो प्रकार:
(६४) द्वीन्द्रिय, (६५) श्रोन्द्रिय, और (६६) चतुरि. न्द्रियजाति पोषकर्मो का समझना चाहिये ।
(६७) जिस कम से जीव, ऊंट या गधे जैसा चले, उसे 'अशुभविहायोगति' पापकर्म कहते हैं।
६८) जिस कम से जीव अपने ही अवयवों से दुखी हो, उसे 'उपधात' पापकर्म कहते हैं। वे अवयव प्रतिजिह्वा [ पडजीम ], कण्ठमाला, छठी अंगुली आदि हैं।
(६६-७२) जिन कर्मो से जोव का शरीर अशुभवर्ण अशुभ रस और अशुभ स्पर्श वाला हो, उनको क्रमसे 'प्रशस्तवर्ण' 'प्रशस्तगन्ध' 'अप्रशस्तरस' और 'प्रशस्तस्पर्श पापकर्म कहते हैं। __ नील और कृष्णवर्ण अशुभ वर्ण हैं । दुगंध, अशुभ गन्ध । गुरु, कर्कश, रूक्ष और शीत स्पर्श, अशुभ स्पर्श : तिक और कटु रस, अशुभ रस हैं।
(७३-७७) जिन कर्मोंसे अन्तिम पांच संहननोंकी प्राप्ति हो, उन्हें 'अप्रथमसंहनन' नाम पापकम कहते हैं ।
पांच संहनन ये हैं:-ऋषभनाराच, २. नाराच, ३ अर्धनाराच, ४ कीलिका और ५ सेवार्च ।
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