Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (३०) * नवतस्त्र * 000000 (१०) जिस कर्म से लोगों में यश और कार्ति फैले, उसे 'यशः कीर्ति' नामकर्म कहते हैं ||१७|| पापतत्त्व । नाणंतरायदसगं, नव बीए नीxsसाय मिच्छत ं । थावरदस नरयतिग कसायपणवीस तिरियदुगं ॥ १८ ॥ "इस गाथा में तथा आगे की दो गाथाओं में पापतश्व के बयासी भेद कहे जाते हैं ।" For Private And Personal ❤❤ ज्ञानावरणीयके पांच भेद और अन्तराय के पाँच भेद मिलाकर दस भेदः -- १ मतिज्ञानावरणीय, २ श्रुतज्ञानावरणीय, ३ अवधिज्ञानावरणीय, ४ मनः पर्यवज्ञानावरणीय, ५ केवलज्ञानावरणीय ६ दानान्तराय, ७ लाभान्तराय, ८ भोगान्तराय, ६ उपभोगान्तराय, १० वीर्यान्तरायः दर्शनावरणीय कर्मके नव भेद - ११ चक्षुदर्शनावरणीय, १२ श्रचतुर्दर्शनावरणीय, १३ अवधिदर्शनावरणीय, १४ केवलदर्शनावरणीय, १५ निद्रा, १६ निद्रानिद्रा, १७ प्रचला, १८ प्रचलाप्रचला, १६

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