Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * नवतव* सामान्य बोध होता है उसे 'अवधिदर्शन' कहते हैं उसका श्रावरण, 'अवधिदर्शनावरणीय पापकर्म कहलाता है। (१४) संसार के सम्पूर्ण पदार्थो का जो सामान्य अवरोध होता है, उसे 'केवलदर्शन' कहते हैं, उसका भोवरण 'केवलदर्शनावरणीय' पापकर्म कहलाता है। (१५) जो सोया हुआ आदमी जरासी खटखटाहटसे या अावाजसे जाग जाता है। उसकी नींदको निद्रा' कहते हैं, जिस कर्मसे ऐसी नींद आवे उस कर्मका भो नाम 'निद्रा' है। (१६) जो श्रादमी, बड़े जोरसे चिल्लाने या हाथ से जोरसे हिलाने पर बड़ी मुश्किलसे जागता है, उसकी नींदको 'निद्रानिद्रा' कहते हैं, जिस कर्भसे ऐसी नींद भावे उस कर्मका भी नाम 'निद्रनिद्रा' है। (१७) खड़े खड़े या बैठे बैठे जिसको नींद आती है, उसकी नींद को प्रचला कहते हैं, जिस कर्मसे ऐसी नींद आये, उस कर्मका भी नाम 'प्रचलो' है। (१८) चलते फिरते जिसको नींद आती है, उसकी नींदको 'प्रचलाप्रचला' कहते हैं, जिस कर्मसे ऐसो नींद आवे, उसका भी नाम 'प्रचलाप्रचला' है। (१६) दिनमें सोचे हुये काम को रातमें नींदकी For Private And Personal

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