Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * जोवतत्व * 00.00000.00amesnewa0000000000000000ones (१) पांच प्रकार का ज्ञान और तीन प्रकारको अज्ञान, ये दोनों ज्ञान शब्द से लिए जाते हैं। ज्ञान के पांच भेद ये हैं:-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान । अज्ञान के तोन भेद ये हैं,-मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान । इनको क्रम से कुमति, कुश्रत और कुअवधि भी कहते हैं। जिस जोव में ज्ञान हो, उसे सम्यग्दृष्टि और जिसमें अज्ञान हो उसे मिथ्याष्टि कहते हैं: (२) दर्शन के चार भेद हैं:-चक्षुर्दर्शन, अचक्षदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन । (३) चरित्र के दो भेद हैं:-भाव चारित्र और द्रव्यचारित्र । भावचारित्र के पांच भेद हैं:--सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात। क्रिया के निरोध को द्रव्यचारित्र कहते हैं। (४) तप के दो भेद हैं:-द्रव्यतप और भावतप द्रव्य तप के बारह भेद हैं, वे आपकहे गये हैं । इच्छा के निरोध को भाव तप कहते हैं। (५) सामर्थ्य, बल अथवा पराक्रम को वीर्य कहते हैं। (६) उपयोग के दो भेद हैं: साकार और निराकार। साकार उपयोग को ज्ञान कहते हैं, और निराकार उपयोग को दर्शन । ज्ञान के आठ भेद और दर्शन के चार भेद, यह बारह प्रकार का उपयोग है। For Private And Personal

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