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(८)
* नवतत्व * 00000000000000000000००००००००००००००००००००० व्याप्त नहीं हैं किन्तु उनके रहने को जगह नियत है।
संज्ञी पचेन्द्रिय वे हैं जिनको पाँच इन्द्रियों और मन हो, जैसे:-देव, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय को पांचों इन्द्रियां होती हैं पर मन नहीं होता, जैसे:-मछली, मेढ़क तथा खून, वीर्य, वात, पित्त, कफ आदि के सम्मूर्छिम मनुष्य जीव ।
जिन जीवों की जितनी पर्याप्तियां कही गई हैं उन पर्याप्तियों को यदि वे पूरी कर चुके हो, तो 'पर्याप्त' कहलाते हैं। जिन जीवों ने अपनी पर्याप्ति पूरी नहीं की, वे 'अपर्याप्त' कहलाते हैं।
"अब जीव का लक्षण बतलाते हैं।" नाणं च दंसणं चेव,
चारतं च तवो तहा। वीरियं उपभोगो अ,
एनं जीअस्स लक्खणं ॥५॥ ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के लक्षण हैं अर्थात् ये, जीव को छोड़ कर किसी दूसरे पदार्थ में नहीं रहते ॥५॥
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