Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * अजीवतत्त्व * Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 00000000 00000000 होता है। ऐसे अनन्त कालचक बीतने पर एक 'पुद्गलपरावर्त' होता है । कोड़ाक्रोड़ी-कोड़को क्रोड़ से गुणने पर जो संख्या होती है उसे 'क्रोड़ाक्रोड़ी' कहते हैं । I पिच्चं कारण कत्ता, (१६) " छह द्रव्यों का विशेष स्वरूप कहते हैं । " परिणामि जीव मुत्तं, सपएसा एग खित्त किरिया य । सव्वगय इयर वेसे ॥१४॥ For Private And Personal जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, श्राकाशास्तिकाय और काल - ये छह द्रव्य हैं । इनमें से जोब और पुद्गन ये दो परिणामी हैं; जीव चेतन द्रव्य है; पुद्गल मूर्त्त हैं; जीव, पुद्गल धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य प्रदेश सहित हैं; धर्म, अधर्म और आकाश - ये तोन, एक एक हैं; आकाश क्षेत्र है; जीव और पुद्गल सक्रिय हैं, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नित्य हैं, धर्म अधम, आकाश काल और पुद्गल, कारण हैं; जीव कर्ता आकाश सर्वगत- अर्थात् लोक- अलोक व्यापी है, और छहों द्रव्य प्रवेश रहित हैं - अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का स्वरूप नहीं धारण करता ।। १४ ।।

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