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* पुण्यवस्व * (२५) तैजस शरीर और कार्मण शरीरका अनादिकाल से जीव के साथ सम्बन्ध है और मोक्ष पाये विना उन से बियोग नहीं होता।
(१३-१५ ) अंग, उांग और अंगोपांग, जिन फर्मों से मिले उनको 'अंग' कर्म, 'उपांग' कर्म और 'अंगोपांग' कम कहते हैं।
जानु, भुजा, मस्तक, पीठ आदि अंग हैं, अंगुली घगैरह उपांग और अंगुलीके पर्व, रेखा आदि 'अंगोपांग' कहलाते हैं।
औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरको अङ्ग, उपाङ्ग आदि होते हैं लेकिन तैजस और कार्मण शरीर को नहीं।
(१६) प्रथम संहनन-'वज्रऋषभनाराच'-जिस कर्मसे मिले, उसे 'वज्रऋषभनाराच' नामकर्म कहते हैं ।
हड्डियोंकी रचनाको 'संहनन' कहते हैं। दो हाड़ोंका मकट बन्ध हनेपर एक पट्टा (बेठन ) दोनोंपर लपेट दिया जाय फिर तोनोंपर खीला ठोका जाय, इस तरह की मजबूत हड्डियों की रचना को 'वज्रऋषनाराच' कहते हैं।
(१७) प्रथम संस्थान-'समचतुरस्र' जिस कर्मसे मिले, उसे 'समचतुरस्र' संस्थान नामकर्म कहते हैं।
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