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* नवतत्त्व * c.000000000000000000000000000000000000000
पालथी मारकर बैठने से दोनों जानु (घुटने) और दोनों कन्धों का इसी तरह बायें जानु और दाहिने कन्धे को तथा दक्षिण जानु और वामस्कन्ध का अन्तर समान हो, तो उस संस्थान को 'समचतुरस्त्र' संस्थान कहते हैं। जिनेश्वर अगरान् तथा देवताओं का यही संस्थान है।
वरण चउक्काऽगुरुलहु,
परघा ऊसास प्रायवुजोधे। सुभखगइ निमिण तसदस,
सुर-नर-तिरिग्राउ तित्थयरं ॥१६॥ वर्ण चतुष्क (वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श), अगुरुलघु, पराघात, श्वासोच्छ्वास, पातप, उद्योत, शुभविहायोगति, निर्माण, सदशक, सुरायुष्य, मनुष्यायुध्य, तिर्यश्चायुष्य और तीर्थङ्कर नामकर्म ॥ १६॥
(१८-२१) जिन कर्मों से जीवका शरीर, शुभवर्ण, शुभगन्ध, शुभरस और शुभस्पशवाला हो, उन कर्मों को 'वर्णचतुष्क' नामकर्म कहते हैं।
लाल, पीला और सफेद रंग, शुभ वर्ण कहलाता है। सुगन्ध-खुशबूको शुभगन्ध कहते हैं । खट्टा, मीठा और
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