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* नवतस्व* 900000000000000000000000000000000000000
"छह पर्यामियों के नाम, और वे किन जीवों को कितनी होती हैं,
___ सो कहते हैं।" श्राहार-मरीर-इंदिय-,
पजती प्राणपाण भाममणे । चरपंच पंच पित्र,
इग-विगलाऽसन्नि-सन्नीणं ॥६॥ श्राहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति और मनःपर्याप्ति, ये छह पर्याप्तियाँ हैं । एकेन्द्रिय जीव को चार; विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञो पञ्चे. न्द्रिय को पाँच और संज्ञोपंचेन्द्रिय को छह पर्याप्तियाँ होती है ॥ ६॥
शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते हैं; जीवसम्बद्ध पुद्गल में एक ऐसी शक्ति है जो आहार को ग्रहण कर उसका रस बनाती है, उस शक्ति का नाम है 'आहारपर्याप्ति' ।
रसरूप परिणाम का खून, मांस, मेद ( चर्बी ), अस्थि ( हड्डि) मजा ( हड्डि के अन्दर का कोमल पदार्थ ) और वीर्य बनाकर शरीर रचना करने वाली शक्ति को शरीर पर्याप्ति कहते हैं।
सात धातुओं में रक्त मांस आदि में परिणत रस से इन्द्रियों के बनाने वाली शक्ति को 'इन्द्रियपर्याप्ति' कहते हैं।
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