Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir *नवतस्व* - - 0 . अजीव तत्त्व । "अब अजीवतत्त्व का वर्णन करते हुए प्रथम अजीव तत्व के चौदह भेद कहते हैं।" धम्मा धम्माऽगासा, तिय तिय भेया तहेव श्रद्धा य । खंधा देस पएसा, परमाणु अजीव चउदसहा ॥८॥ स्कन्ध, देश और प्रदेश रूप से धर्मास्तिकाय, अधआस्तिकाय और श्राकोशास्तिकाय के तीन तीन भेद हैं, इस लिये तीनों के नव भेद हुए; काल का एक भेद और पुद्गल के चार भेद हैं:-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु। सब मिल कर अजीव के चौदह भेद हुए ॥८॥ स्कन्धः-चतुर्दशरज्ज्वात्मक लोक में पूर्ण जो धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, अआकोशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय हैं, ये प्रत्येक स्कन्ध' कहलाते हैं। मिले हुए अनन्तपुद्गलपरमाणुओं के छोटे समूह को 'स्कन्ध' कहते हैं। देशः---स्कन्ध से कुछ कम, अथवा बुद्धिकल्पित स्कन्धभाग को 'देश' कहते हैं। प्रदेशः-स्कन्ध से अथवा देश से लगा हुआ अति For Private And Personal

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