Book Title: Nandanvan Kalpataru 2006 00 SrNo 17
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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।।२।।
स्तुतिकल्पलता ।। श्रीशाकेश्वरषत्रिंशिका ॥
श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरशिष्य
प्रवर्तकमुनिश्रीयशोविजयः ।। अथ पञ्चदशाक्षरचरणमतिशक्वर्यां मालिनीवृत्तम् ।। असमशमविलासं निर्जराचार्यवाचाऽप्यगणितमहिमानं शुद्धबोधप्रदानम् ॥ प्रभुमहमथ नौमि त्रायकं विश्वजन्तोरतलकुगतिकूपाद्वर्यशकेश्वरेशम् ।।१।।
॥ अथैकादशाक्षरचरणं त्रिष्टुभि इन्द्रवज्राच्छन्दः ।। यद्यप्यबुद्धिस्तव सुस्तवेऽहं निःशक्तिको नाथ तथाऽपि मेऽद्य ॥ दोषापनोदक्षमवाग्विलासं त्वां वीक्ष्य चित्तं यतते स्तवाय
॥ अथैकादशाक्षरचरणमुपजातिवृत्तम् ।। विचित्रमाधुर्यविलासिदेवासुरादिवाक्यैः सुहितश्रुतेस्ते ।। प्रमोददायी भविता मदीयवाक्काञ्जिको देव ! रुचिप्रदानात् ॥३॥
॥ अथैकादशाक्षरचरणं त्रिष्टुभि इन्द्रवज्रावृत्तम् ॥ श्रीपार्श्वनाथं भवघोरकूपसन्तारवाग्दीर्घवरत्रमाप्तम् ।। सद्बोधनौतीर्णभवाब्धिपारं वन्दारुसन्तानकमानतोऽस्मि
॥ अथैकादशाक्षरचरणं त्रिष्टुभि इन्द्रवज्रावृत्तम् ।। निःशेषदोषानलनाशनीरम् त्वां ये श्रयन्ते गुणवल्लिमेघम् ॥ तानुत्सुका निर्वृतिरेति शीघ्रं पद्मालया पद्ममिव प्रभाते
॥ अथैकादशाक्षरचरणं त्रिष्टुभि इन्द्रवज्रावृत्तम् ।। प्राप्तप्रकर्ष कृतपुण्यसारं जन्माऽद्यजातं सफलं ममैव ।। अद्यैव जातो बहुमानपात्रं ज्ञाताऽद्य संसारविसारता च
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॥४॥
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॥६॥
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नगणयुगलयुक्ता मेन मध्ये प्रयुक्ता यगणयुगलनद्धा बद्धमोदप्रबन्धा ।। इह भवति न केषां हारिणी चित्तवृत्तेमधुरपदविलासा मालिनी नागवाहैः ॥ उट्टवणिका यथा।।।।।। ऽऽऽ । ऽऽ । 55 आदौ तयुग्मेन विराजमाना मध्ये जकारेण विभूषिता या ॥ अन्ते गकारद्वयमण्डिता सा स्यादिन्द्रवज्रा विबुधप्रसिद्धा । उट्टवणिका यथा 55। 55।।5। 55 ॥
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