Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 9
________________ मार्थिक सहायता की भी घोषणा की थी। सेठी सा. की प्रेरणा से ही कलकत्ता के प्रमुख समवसायी श्री शांतिलाल जी जैन ने प्रकादमी के अध्यक्ष पद को स्वीकारा है। प्रकादमी के प्रति सेठी सा. के महत्वपूर्ण सहयोग के लिए हम प्राभारी है। इसके पूर्व अकादमी का छा पुष्प "बुलाखी वन्द बुलाकीदास एवं हेमराज" महामहिम राष्ट्र पति श्री ज्ञानी जैलसिंह जी द्वारा विमोचित हुआ था जो संस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पालेख्न रहेगा। नये सवस्यों का स्वागत ___ सप्तम भाग के विमोचन के पश्चात् जयपुर के प्रसिद्ध रत्न व्यवसायी श्री नानगराम पी ग जौहरी प्राकामी iihiइने ।की : नगर के प्रसिद्ध समाज सेवी, उदारमना एवं वर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं। जैनाचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज के संघ को देहली से जयपुर लाने, जयपुर में चातुर्मास की व्यवस्था करने में प्रापने यशस्वी कार्य किया था । आपकी पस्नी एवं सभी पुत्र प्रापके पदचिह्नों पर चलने वाले हैं । अकादमी के सहसंरक्षक के रूप में हम आपका हार्दिक स्वागत करते है। अकादमी के सह संरक्षक सदस्य बनने वालों में जयपुर के ही श्रीकपूरचन्दगी भौसा के हम पूर्ण भाभारी है तथा प्रकाश्मी परिवार के रूप में हम खनका हार्दिक स्वागत करते हैं। श्री कपूरचन्दजी भौंसा नगर के सम्माननीय व्यक्ति हैं तथा सभी सामाजिक संस्थानों को अपना सक्रिय सहयोग देते रहते हैं । सह संरक्षक सदस्यों में प्रावरणीया पद्मश्री पंडिता सुमति बाईजी शहा का हम किन शब्दों में धन्यवाद ज्ञापित करें। पंडिता सुमति पाईजी महाराष्ट्र की ही नहीं समस्त देश की गौरव शालिनी महिलारत्न हैं जिन्होंने प्रपना समस्त जीवन शिक्षा प्रसार समाज एवं साहित्य सेवा में समर्पित कर रखा है । आप जैन समाज में एक मात्र महिला है जिनको सरकार ने पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया है। हम आपका हार्दिक सागत करते हैं। प्रकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में हम देहली के माननीय श्री मदनलालजी अन घण्टेवाला का स्वागत करते हैं । श्री मदनलाल जी देहली के प्रसिद्ध समाज सेवी एनं धर्मप्रेमी महानुभाव है तथा घण्टेवाला के नाम में देहली में ही नहीं सर्वत्र प्रसिद्ध है । भापकी माताजी का धर्म-प्रेम दर्शनीय एवं अनुकरणीय था। ६५ वर्ष की वृक्षा होने पर भी प्राप नियमित मन्दिर जाती भी एवं जिन भक्ति में अपने प्रापको समर्पित कर देती थी। आकरमी के सम्माननीय सरस्यों में सर्व श्री शीलसन को अन्दावनरास जी ।

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