Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 8
________________ अकादमी--प्रगति पथ पर 'मुनि सभाधन्व एवं उनका पद्मपुराण' को पाठकों एवं माननीय सदस्यों के हाथों में देते हुए प्रकादमी के निदेशक मंडल को प्रत्यधिक प्रसन्नता है । अकादमी का यह प्रांठया पुष्प है और इसी के साथ सम्पूर्ण योजना की क्रियामिति में ४० प्रतिशत सफलता प्राप्त कर ली गयी है । यद्यपि प्रभी ६० प्रतिशत कार्य बाकी है लेकिन अगले पांच वर्षों में हमारी योजना पूर्ण हो जावेगी ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है ।। से सभी हिन्दी जन कवियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को 20 भागों में पुस्तक बद्ध कर लेना अत्यधिक कटिन का है क्योंकि खोज एवं शोध में नये-नये काबि मिलते रहते हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । ऐसे कयियों को हम इस योजना में प्रथम स्थान देना चाहते हैं। मुनि मापन्द, बाई प्रजीतमति, धनपाल, भ.महेन्द्र कीर्ति, सांग, बुलाखीचन्द, गारवदास, चतुरूमल, ब्रह्म पशोधर ग्रादि कुछ ऐसे ही कवि है जिनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों ही सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य की थाती है । अष्टम पुष्प में केवल एक ही कवि एवं उसके पद्मपुराण को ही दे सके हैं लेकिन यह एक ही कवि कितने ही कवियों के बराबर है और उसका पद्मपुराण हिन्दी की अमूल्य कृति है। अब तक हिन्दो पद्मपुराण का इतिहास पं. खुशालचन्द काला से प्रारम्भ होता था जिन्होंने संवस १७७३ में पद्यबद्ध पद्मपुराण की रचना की थी लेकिन प्रस्तुत पद्मपुराण के प्रकाशन से उसका इतिहास ७२ वर्ष पूर्व चना जाता है । जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सप्तम पृष्ठा का विमोचन महमदाबाद नगर में अप्रैल ८४ में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव पर प्रायोजित समारोह में यहां के प्रमुख व्यवसायी एवं धर्मनिष्ठ श्री राधेश्यामजी सरावगी द्वारा किया गया था। इसके लिये हम आपके एवं महोत्सव के संयोजक डा. शेखर जैन के प्राभारी हैं। विमोचन के अवसर पर अकादमी के मरक्षक एवं प्रभा. दि. जैन महासभा के अध्यक्ष माननीय श्री निर्मल कुमार जी सेठी ने अकादमी को अपनी शुभकामनाएं देते हुए महासभा की ओर से ५००० रु. की

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