Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 17
________________ (२) मेरी जोवन प्रपंच कथा बाद में पिछले जुलाई महीने के अन्त में अहमदाबाद से मेरा यहां चन्देरिया में २५ वर्ष पहले स्थापित अपने सर्वोदय साधना आश्रम में आना हुआ । यहाँ पाने के बाद मेरा स्वास्थ्य अचानक बहुत कुछ बिगड़ा सा अनुभव होने लगा । जीवन का समापन अब शीघ्र होने जा रहा है ऐसा कुछ आभास भी होने लगा। स्वाभाविक ही मैं बिछौने में पड़े पड़े जीवन का सिंहावलोकन करने लगा । जोवन का वैसे प्रवास काल तो बहुत लम्बा है। पूरे ७५ वर्ष से भी अधिक समय तक मैं चलता रहा फिर भी किसी स्थान और किसी लक्ष्य पर स्थिर होकर नहीं बैठा । इस दीर्घ कालीन प्रवास में अनेक छोटे बड़े विशिष्ठ व्यक्तियों के सम्पर्क में आने का अवसर मिला । इन व्यक्तियों के सम्पर्ककालीन संस्मरणों का विशाल पुन्ज मेरे इस छोटे से मन में इतना भरा हुआ है जिनकी गिनती करना भी अशक्य सा लग रहा है । यों तो प्रकृति के नियमानुसार यह स्मरण पुज इस मन के विलीन होने के साथ हो क्षण भर में विनष्ट हो जायगा; परन्तु जब तक यह मन कुछ क्रियाशील बना रहता है तब तक इन संस्मरणों को बाहर फेंक देना भी शक्य नहीं हो रहा है । इस खयाल से इन दिनों मेरा मन फिर थोड़ा सा उस अधूरी जीवन-कया के सम्बन्ध में जितना कुछ लिखा जा सके उतना लिखने को अब प्रवृत्त हो रहा है न मालूम कब तक और कहाँ तक यह कथा पागे चलेगी । साधु केष की पहली रात अब मैं जीवन के उस दिन का फिर स्मरण करना चाहता हूं, जिस दिन मैंने दिग्ठाण के उस बगीचे में साधुवेश पहने पहली रात व्यतीत की ! हाँ, तो आश्विन शुक्ला की यह त्रयोदशी की रात है । आकाश में चांदनी छिटक रही है । शरद् कालीन शुभ्र आकाश अपनी दिव्य प्रभा से प्रकाशित हो रहा है । धरती माता हरे भरे खेतों और जंगलों से उल्लसित हो रही है । ऐसी ही एक रात सुखानन्दजी में जब किशन भैरव के रूप में उस विशाल वट वृक्ष के चौंतरे पर मृगछाल पर बैठा हया और सारे शरीर पर भभूत लगाये ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय का मत्र मन में जाप करता हा जिस मनोभाव का अनुभव किया-उसका वर्णन उस स्थान पर किया है । आज जीवन में फिर किसी अन्य मार्ग पर चलने का नया प्रयास शुरू हो रहा है। आज मैंने किशनलाल के वे सब पुराने कपडे-जो सामान्य कर्ता और छोटीसी धोती जितने थे, उनको शरीर पर से उतार फेंका और उसकी जगह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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