________________
(६८)
मेरी जीवन प्रपंच कर
उच्चार उतने शुद्ध नहीं होते थे इसलिए वह एक छोटी साधवी जो मराठी बहुत अच्छा पढ़ना-बोलना जानती थीं उसने मेरे उच्चारों को शुद्ध बनाने का, शिक्षिका का कार्य शुरु किया। यू वह मेरे से उम्र में भी कुछ बड़ों थी और दिक्षा भो मेरे से पहले ही ली थी परन्तु मैं गुरु पद का धारक होने के नाते उसके मन में कुछ संकोच हुआ करता था।
वारी में अज्ञात शिक्षक से स्वल्प समागम
उन्हीं दिनों एक महाराष्ट्रीय शिक्षक भाई जो उसी गांव के रहने वाले थे और कहीं बड़े गाँव में एक स्कूल के अच्छे से शिक्षक थे उनसे मेरा मिलना हुया। उन्होंने गांव के जैन भाइयों से सुना कि यहां पर एक बड़े जैन साधु चातुर्मास रहे हुए हैं और उन्होंने ६५ दिन जितने लम्बे उपवास वालो तपस्या शुरु की है इसलिए वे भी, और लोगों की तरह तपस्वीजी के दर्शनाथ पाए । श्रावकों के लड़कों से उनको मालूम हुआ कि मैं मराठी भाषा का ठोक ठीक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं तो वे अपनी सहज भाव की जिज्ञासा से मेरे पास आकर बैठे। उनको जैन साधु की चर्या का विशेष परिचय नहीं था । परंतु एक शिक्षक होने के नाते मुझसे कुछ प्रश्न पूछने लगे। मैंने जो कुछ दो चार बातें उनसे कहीं तो वे कहने लगे कि यदि आपको कोई संकोच न हो तो मैं कुछ आपके प्राचार-विचार के बारे में अधिक जानना चाहता हूं सो मैं कभी-२ पाकर अापसे ऐमा वार्तालाप करना चाहता हूँ ।
मुझे उनकी बातचीत की शैली अाकर्षक लगी और मुझे लगा कि मैं भी उनसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकता हूँ यह सोच कर मैंने उनसे सहर्ष कहा कि आप जरूर मुझसे ऐसा वार्तालाप कर सकते हैं ।
हमारे साधु धर्म के प्राचार के मुताबिक हम किसी ग्रहस्थ का ऐसा नहीं कह सकते कि आप अवश्य आते रहिये, इससे हमको भी प्रसन्नता होगी और हमें भी कुछ जानने को मिलेगा इत्यादि। फिर वे कई दिनों तक मेरे पास नियमित घंटा-दो घंटा आने लगे और खास करके जैन धर्म के बारे में बहुत सी बातें पूछते रहे । उनको मैंने पूछा कि मराठी भाषा का ठीक ज्ञान प्राप्त करने के लिये किन पुस्तको का वाचन करना चाहिये ? तब उन्होंने पूछा कि आपको रुचो किस विषय को खास जानने की रहती है ? मैंने सहज भाव से कहा कि मुझे देश और धर्म का इतिहास जानने की अधिक जिज्ञासा रहती है, तब उन्होंने प्रारम्भ में देश का इतिहास जानने के लिए दो चार छोटी पुस्तकों के नाम बतल.ए । मैंने कहा मुझे राजपूत जातो का इतिहास जानने की अधिक इच्छा रहती है। मैंने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org