Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 102
________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव साध्वियां है तब किशनलाल जैसे को उस पद के लिए तैयार करना चाहिये उनकी भावना के योग्य मुझ में कुछ भी नहीं था । ऐसा मेरा अंतर कहा बारी के चातुर्मास के बाद ही उक्त मास्टर तथा सन्यासिनी के समागम से मेरा मन कुछ और ही दिशा में गति करने लग गया था और वह धीरे धीरे उस दिशा में बढ़ने लग गया था । भुसावल में उक्त जैन नवयुवक के साथ सत्यार्थ प्रकाश के सम्बन्ध से लेकर जो बातें हुई उन ने भी मेरे मन की गति को कोई नया दिशा संकेत दिया । उसके परिणाम स्वरुप मैं अपने विद्या अध्ययन के बारे में किसी नये मार्ग की खोज व्यग्र रहने लगा. रंगलाय के साथ भी बातों से मुझे उस मार्ग का आभास होने लगा । इत्यादि । परन्तु करता था । यों सूय पाठ भी मैं बरावर उज्जैन वाले उस धम स्थानक में जैसा कि पहले सूचित किया हुआ हैं कुछ पुस्तकों का पुराना संग्रह था एक बक्से में हस्तलिखित पोथियों के ५-७ वेस्ट और एक दूसरे लकड़ी के बक्से में १०-२० छपी हुई पुस्तकें थी उन पुस्तकों को मैं धीरे धीरे देखने लगा । उसमें छपा हुआ एक बड़ा ग्रंथ मेरे देने में आया जिसका नाम सूयगडांग सूत्र था गडांग सूत्र का प्रथम श्रुत स्कंत्र मैंने कंठस्थ कर रखा था और उसका करता रहता था परंतु मैंने जिस हाथ को लिखी पुस्तक (पोथी) पर से वह सोंखा या वह तौ कुछ थोड़े से पन्नों की थी उसमें सूत्र के मूल पाठ के साथ भाषा का ब्ार्थ भी लिखा हुआ था यह जो छपी हुई बड़ी पुस्तक मैंने सर्व प्रथम देखी वह तो बहुत बड़ा ग्रंथ सा था ! उसमें सूत्र के मूल पाठ के साथ संस्कृत भाषा में लिखी हुई एक दो बड़ी टीकाएं थीं और साथ में सूत्र का अर्थ भी भाषा में बहुत विस्तार के साथ दिया हुआ था । संस्कृत टीकाएं तो मेरी समझ के बाहर थी परन्तु उस भावार्थ को मैं खूब ध्यान से पड़ता रहा उस पुस्तक के प्रारंभ में जो कुछ प्रस्तावना रुा में गुजराती भाषा में परन्तु देव नागरी अक्षरों में लिखा हुप्रा था उसको ठीक ठोक पड़ गया उनमें यह बताया गया था कि इन संस्कृत टीकामों का बनाने वाले कौन प्राचार्य थे । Jain Education International ( 59 ) " For Private & Personal Use Only - वैसी ही बड़ी दो तीन श्रीर छपी हुई पुस्तकें और दूसरी बड़ी सी वैसी ही पुस्तक थी जिसका पुस्तकें मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य आत्माराम पुस्तकें अच्छी बड़ी थी मेरी उनको पढ़ने की इच्छा हुई । प्रथन मैंने जैन तत्वादर्श को पढ़ना शुरु किया । इस प्रकार व्यवस्थित रुप से जैन धर्म के स्व प को बताने वाली कोई पुस्तक मैंने 4 थी जिनमें एक का नाम जेन तत्वादर्श नाम तत्वनिर्णयप्रासाद था । ये दोनां उर्फ विजयानन्द सूरी की बनाई हुई थीं । www.jainelibrary.org

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