Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 106
________________ स्थानकवासो संप्रदाय का जोवनानुभव पाया कि यदि रंगलाल होता तो उससे मैं किसो स्थान विशेष और किसी मूर्तिपूजक साधु विशेष का परिचय प्राप्त कर लेता और तद्नुसार मैं उस स्थान तथा व्यक्ति की खोज में निकल पड़ता। परन्तु अब वैसी कुछ जानकारी प्रा त होने की सम्भावना न समझ कर, स्वयं ही भटककर, कहीं कोई लक्षभूत स्थान की खोज में, अज्ञात रूप से निकल पड़ने के लिए मैंने मन को तैयार किया । किसी से पूछने पर मुझे मालूम हुग्रा कि पास हो जो रेलवे का स्टेशन है वहाँ से शाम के समय कुछ अंधेरा होते२ ही एक गाड़ी फतेहाबाद स्टेशन की तरफ जातो है। मैंने सोचा कि किसो तरह गुपचु। इस गाड़ी में बैठकर जोवन का नया रास्ता पकड़ता ठोक होगा । वे चौमासे के दिन थे दो दिन काफी पानी को झड़ियाँ आती रही। रात को भी रहरह कर पानी बरसता रहा । दोपहर के ३-४ बजे बाद वर्षा कुछ बन्द हुई, तब अचलदासजी और मुन्नालालजी नजदीक के श्रावकों के वहाँ से आहार पानी बहर लाये । सबके साथ बैठकर मैंने भी पाहार पानी किया । सध्या होने में कोई घण्टा भर की देरी थो आकाश में बादल घिर रहे थे मैंने सोचा कि रात में फिर जोरों से वर्षा होगी। तब मैंने तपस्वी जी से कहा कि दो-तीन दिन हुए मैं बाहर शौच नहीं गया इसलिए मैं शौच हा पाता हूँ । वर्षा पाने वालो दिख रही है इसलिए मैं जल्दा हो किसी वैमो हो नजदोक को भूमि मैं शोच से निवृत हो पाना चाहता हूँ । मेरो शौच जाने की आदत हमेशा कहीं बाहर अच्छी जगह में जाने की रही है अन्य साधुनों को तरह मैं किसी ऐसो वैसी जगह में शच निवृति नहीं कर सकता था न कभी रात विरात ही मैं शौच से निवृत होता था। ऐसी अनुकूल जगह न मिलती तो मैं दो-दो तीनतोन दिन तक शौच नहीं जाता था । कई साधु समय बेसमय मलत्याग की क्रिया अपने पास वाले कोई ऐसे पात्र में कर उसे स्थानक के बाहर रास्ते आदि में विसर्जोत करते देखे गए थे। मुझे इसकी बड़ी घृणा रहती थी मैंने कभी उस वेष में ऐसो मल विसर्जन क्रिया नहीं की। कुछ शुभ प्रकृति के उदय से मेरा शारीरिक संगठन ठीक बना हुअा होने से मुझे इस विषय में कोई अनियमितता का अथवा कष्ट का खास अनुभव नहीं हुआ। आज इस निवासी वर्ष की उम्र में भो मेरो यह शारीरिक प्रक्रिया नियमित रही है। किसी बिमारी विशेष के कारण कभी अनियमितता का अनुभव हो वह अलग बात है परन्तु स्वस्थ दशा में वैसा अनुभव नहीं हुा । तास्वीजी मेरी इस प्रकृति को जानते थे इसलिए उन्होंने मुझे कहा कि वर्षा का जोर दिखाई देता है इसलिए जल्दी ही निपट पाना । मैंने तहत्ती कह कर उसका उत्तर दिया और शीघ्रता से अन्दर जाकर एक कागज जो कुछ दो-तीन दिन पहले मैने लिख रखा था उसको अपने प्रासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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