Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 95
________________ (८. ) मेरी जीवन प्रपंच कथा स्थानक था उसमें जाकर हम ठहरें । इसी सम्प्रदाय के नन्दलालजी आदि साधु भी वहां पर थे । शहर में हुक्मीचन्दजी के सम्प्रदाय के पुज्य श्रीलालजी तथा जवाहरलालजी और चोथमलजी आदि साधुअो का भी अच्छा समुदाय था । कुछ और भी मारवाड़ी सम्प्रदाय के साधु वहां पर आये ए थे । नीयत समय पर क्रोन्फेस का समारोह होना शुरु हुा । हजारों जैन भाई-बहन वहां इकठे हुए थे । खासकर के काठियावाड़ के कुछ प्रसिद्ध जैन भाई उसमें अधिक उत्साह दिखा रहे थे । काठियावाड़ निवासी भाइयों की प्रेरणा से मोरबी और शायद राजकोट के राजा भी उस कोन्फ्रेन्स में उपस्थित होने वाले थे, इसलिए रतलाम के महाराजा ने भी उस समारोह के लिए अच्छा सहयोग दिया । उद्घाटन के समय हम साधु जनो को भो वहां उपस्थित होने का आग्रह पूर्वक प्रामंत्रण दिया गया और आगत श्रावक समुह को कुछ मांगलिक रुप धर्मोपदेश देने की व्यवस्था की गई थी। शायद जैन स्थानक वाली सम्प्रदाय की यह सबसे पहली कोन्फ्रेन्स थी और इसके लिए काफी प्रचार किया गया था । शहर के बाहर बहुत बड़ा पाण्डाल बनाया गया था और आने वाले अथितियों के लिए वहां ठहरने की भी बड़ी विशाल व्यवस्था की गई थी कोई तीन दिन का वह सम्मेलन था । हम साधु लोग भी सम्मेलन प्रारम्भ होने के २ घण्टे पहले वहां पांडाल में जाकर एक तरफ बैठा करते थे । साधुप्रो के बैठने के लिए बिल्कुल अलग व्यवस्था की गई थीं । विशिष्ट अथितियो के लिए तथा कोन्फ्रेन्स के अग्रगण्य कार्य कर्तामों के लिए अलग बड़ा सा सुशोभित मंच बनाया गया था । हम लोग पहले हो जा कर अपने “पोठ" पर बैठ जाते थे श्रावक लोग खड़े होकर स्वागत करते थे । साधुओं के अलग - अलग समुदाय के लिए अलग - अलग पट्ट रख दिये गये थे । उनपर हम यथा स्थान प्रासन लगाकर बैठ जाते थे प्रारंभ के समय जब मोरवी के राजा आदि विशिष्ट अतिथि आये तो उनका श्रावकों ने भव्य स्वागत किया । उन्होने हम साघुओं की तरफ भी हाथ जोड़कर नमस्कार किया । उस जमाने में जैन समाज की दृष्टि से यह एक अद्भुत मा दृश्य था । सभा का प्रारंभ होने पर पहले पुज्य श्रीलालजी ने मंगला चरण सुनाया । कुछ थोड़ा सा धर्मोपदेश जवाहरलालजो ने भी सुनाया । फिर उन्हीं के शिष्य चौथमल जी नामक साधु ने खड़े होकर कोई प्राधा घन्टे तक व्याख्यान दिया चौथमल जी एक अच्छे व्याख्यानिक कहे जाते थे । उनकी आवाज बहुत बुलंद थी और वे अक्सर उर्दू भाषा को मजले गा२ कर उन पर प्रवचन करते रहते थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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