Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 86
________________ संप्रदाय का जोवनानुभव मां में तपस्वीजी महाराज का चातुर्मास है और उन्होंने लम्बी तपस्या करनी शुरू की है तथा वहाँ पर कुछ साध्वियाँ भी है जिनमें उस लड़की को एक भाज़ाई भी है और बड़ो साध्वीजी ने भा ३५ दिन के उपवास शुरू किये हैं तब वे लोग उस बाई को लेकर वारों में आए और वहाँ पर उनको छोड़कर कुछ दिन दूर रहने की दृष्टि से वे वापस अपने गांव चले गये । वह बाई उन साध्वियों के पास ही रहने लगो और उसकी जो भोजाई साच्ची थी उसने उसको अनेक प्रकार का सोखना देनी शुरू की। धीरे धीरे उस वाई का मानसिक वातावरण बदलने लगा और वह कुछ सानायक आदि धर्म क्रियाएं करने में लगने लगी । उन साध्वियों के साथ रहते हुए उसके मन में भा हुया कि मैं भी क्यों न ऐसी तपस्या करूं जिससे मेरे कर्मों का क्षय हो जाय । ऐसा विचार कर उस भी एक महिने के उपवास करने प्रारम्भ किये । उसके इस प्रकार १ महिने के उपवास की बातें सुनकर अन्य रिश्तेदार भी उसकी खबर करने आने लगे । इस प्रकार श्रावण-भादत्रे के दिनों में में वारी में एक अच्छा धार्मिक एवं तास्या का वातावरण जमा रहा । एक हिन्दु सन्यासिनो को आगमन ( ७१ ) एक दिन हिन्दु सन्यासिनी के जैसा भगवा भेष धारण को हुई प्रोढ़वयवाली और दिखने में सुशील ऐसी एक महिला हमारे उस धर्म स्थान में प्रायीं उसने गले में रुद्राक्ष की माला पहन रखी थी, और शरीर पर भगवे रंग की लंबी कफनी पहन रखीं थी - हाथ में वैसा ही भगवे रंग का बड़ा सा झोल था जिसमें उसके कुछ कपड़े, पानी पोने का लोटा यादि सामान था एक बगल में कुछ छोटा सा बटा था जिसमें मोने आदि के कंबल जैसे दो-चार वस्त्र थे। मैं दोपहर के समय उस दुकाननुमा कनरे में बैठ हुआ उन साध्वियों को कुछ पढ़ा रहा था और दो तीन बहनें भी वहां पर बैठी हुई थी। रेल्वे स्टेशन से उतरकर वह सन्यासिनी सी महिला हमारे सामने दुकान के आगे चौंतरे पर आकर बैठी, दो चार मिनिट तक वह चुपचाप बैठी रही और मैं जो उन साध्वियों को कुछ पढा रहा था मौर उसको वह शांत मन से सुनतो रही। मेरे मन में हुआ कि यह कौन बाई हैं? तब मैंने धीरे से उनसे पूछा कि क्यों माईजी तुम यहां किस लिए कर बैठी हो । तब वह धीरे से बोली कि मैंने सुना है कि यहां कोई साधु महाराज ६५ दिन के लंबे उपवास कर रहे हैं तथा कुछ बहनें भी ऐसे लम्बे उपवास कर रही हैं। मैंने गाड़ी में बैठे हुए कुछ लोगों - से ये बातें सुनी तब मेरे मन में हुआ कि मैं भी ऐसे तपस्वीजनों के दर्शन करू और उनसे कुछ ज्ञान प्राप्त करू, इत्यादि कुछ बातें महिला ने कहो जिनको सुनकर मेरे मन में कुछ विशेष विचार आने लगे । मैंने उनसे पूछा कि माईजी श्राप कहां से प्रारही हैं और कहां जाना चाहतो हैं ? तथा प्रापने यह भगवां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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