Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 92
________________ स्थानकवासो संप्रदाय का जीवनानुभव (७७) बेबुनियादी बातें लिखी गई है । जो मनुष्य की सामान्य बुद्धि की समझ के बाहर है । उदाहरण के तौर पर जैन धर्म में ऐसा कहा गया है कि पुराने जमाने में मनुष्य लाखों करोड़ों वर्ष की आयु वाले होते थे तथा उनके शरीर की लम्बाई ऊंचाई-इतनी होती थी कि जो हजारों फूटों से नापने लायक होती थी। इसी तरह की जैन धर्म की कई विचित्र बातें स्वामी दयानन्दजी ने अपने सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक में लिखी हैं और मुझे उन्होंने उस पुस्तक के पढ़ने का आग्रह किया । वही पुस्तक यह मेरे हाथों में है। मैं इसको कुछ बातों का खुलासा मापसे जानना चाहता हूँ। इत्यादि कुछ बातें उस भाई ने कहीं जो मेरे लिए सर्वथा अज्ञात थी। अपनी अज्ञानता को छिपाने की दृष्टि से, मैंने उस भाई से कहा कि तुम इस पुस्तक को मेरे पास रख जानो मैं इसका ध्यान से अवलोकन करना चाहता हूँ और उसका खुलासा सोचना चाहता हूँ। यह सुनकर उस भाई ने वह पुस्तक मेरे पास रख दी और नमस्कार आदि करके चला गया। फिर मैंने धीरे-धीरे उस पुस्तक को पढ़ना प्रारम्भ किया । उसके प्रारम्भ के कुछ प्रकरणों की बातें तो मेरी समझ के बाहर थी, पर उसमें जैन धर्म के विचारों पर आक्षेप करने वाली जो बातें लिखी थी उनको मैंने बहुत ध्यान पूर्वक कई बार पढ़ी । उनके पढ़ने से मुझे ज्ञात हुआ कि स्वामीदयानन्दजी ने, जैन शास्त्रो में वणित काल चक्र के स्वरूप से सम्बन्ध रखने वाली ये बातें लिखी हैं । जैन ग्रन्थों में वर्णन है कि वर्तमान अवसर्पिणी काल के बीते हुए तीसरे-चौथे भारे में जो पशु-मनुष्य आदि प्राणी उत्सन्न होते थे उनको आयु लाखों करोड़ों वर्षों जितनी लंबी होती थी तथा शरीर भी उसी प्रमाण में सैंकड़ों हजारों धनुष्य प्रमाण बड़े होते थे। इसी तरह जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं उसका स्वरूप भी ऐसा वर्णित है जो आज के युग को वास्तविकता से सर्वथा विचित्र और कपोल कल्पना प्रसूत मालूम देता है । प्राचीन इतिहास के जानने की तरह मेरो जिज्ञासा भूगोल विषयक बातों के जानने की भी वैसी ही रही। जम्बुद्वीप के वर्णन स्वरूप जो थौकड़े मैंने पढ़े थे। उनमें मेरी खास रूचि रहती थी । जम्बुद्वीप और धातकी खण्ड आदि ढ़ाई द्वीप का स्वरूप बताने वाले जो नक्शे मुझे मिले मैं उनको सम्भालकर अपने पढ़ने के पुठ्ठ में रखा करता था और बारम्बार उन्हें देखा करता था। उन नक्शों में भरत क्षेत्र, ऐरावत क्षेत्र तथा महाविदेह क्षेत्र के रेखा चित्र दिये गये थे । तथा मेरू पर्वत, हिमवान प्रर्वत, बैताह्य पर्वत आदि बड़े पर्वतों की स्थिती भी उनमें आलेखित की हुई थी। तथा ये क्षेत्र और पर्वत कितने लम्बे-चौड़े और ऊँचे हैं इनका माप भी योजनों की गिनती में लिखा हुआ था। किस तरह हमारे इस भरत क्षेत्र में दिन और रात होते रहते हैं उनको परिगणना भी बताई गई थी। खण्डा जोयण नाम का एक बड़ा सा थोकड़ा मैने ठीकर अभ्यस्त कर लिया था और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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