Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 72
________________ लकवासी संप्रदाय का जोवनानुभव बाल से मैं जरा प्रास्ते घास्ते चलता हूँ, इत्यादि कुछ बातें कहता हुआ वह चलने लगा और हम भी उसके साथ चले । कोई डेढ़ घण्टा जितना दिन बाकी था तब हम उस सतपुड़े के पर्वत श्रेणी की आखिरी पहाड़ो की चोटी पर पहुँचे । वहां से हमारे पड़ाव वाला गांव कोई २-२३ मील के फासले पर दिखाई पड़ा । पर्वतमाला समाप्त हो रहो थी ओर आगे का कुछ समतल मैदान दिखाई देने लगा । दूर ५-७ मील के फासले पर बहती हुई ताप्ती नदी भी वहाँ से बुन्धली सी दिखाई दी। मुझे उस दृश्य को देखकर बहुत यानन्द प्राया । कोई १०-१५ मिनट वहीं खड़ा होकर उस रमणीय उपत्यका को मुग्ध भाव से देखता रहा, पीछे की ओर देखा तो वही घना जंगल और पर्वतों की ऊँचो-नाची श्रेणियाँ दिखाई दे रही थी। वांयें बाजु दूर आसेरगढ़ का धुन्धा सा किला दिखाई दे रहा था । इस दृश्य को देखकर हमारे मन में कुछ सन्तोष हुआ कि चलो बड़ी घाटी पार करली | ( ५७ ) शाम होते-होते उस रास्ते के आखिरी पड़ाव में हम पहुँच गये। चौकीदार ने कहा बाबाजी वह जो मकान दिखाई देता है वहीं हमारी चौकी है, मैं तो अब चौको पर जाऊँगा और ग्राप लोग यह थोड़ी सी दूरी पर स्थित गांव सा दिखाई देता है वहाँ चले जाईये । उस गांव में कुछ किसानों के और दो-तीन अगरवाल बनियों आदि के घर हैं सो चापको वहाँ ठहरने करने की जगह मिल जायेगी । यह अब सान देश की सीमा है इधर की भाषा भी कुछ और तरहकी है, इत्यादि कुछ बातें कहकर वह चौकीदार अपनी चौकी की तरफ चला गया। हमने कुछ कृतज्ञता के भाव भरे शब्दों से उसको विदा किया । उस गांव का नाम तो मुझे याद नहीं आ रहा है । छोटासा ही गांव था । काई ४० - ५० घरों की वस्ती थी किसानों का पहनावा निमाड़ के किसानों से भिन्न था, गांव में मराठे धनगर लोगों के दस-बीस घर थे, उनकी बोलो भी प्राधी मराठी आधी नीमाड़ी जैसी थी। दो-तीन नियों की छोटी दूकानें थी, वहां पर जाकर हमने कहा कि हम जैनियों के साथ हैं और यहां पर रात को ठहरना चहते हैं कहीं कोई ऐसी जगह हो तो हमें बताइये जहाँ हम रात को ठहर जायें । सुनकर एक दनिया जो कुछ शिक्षित सा था उसने कहा कि गांव के बाहर नजदीक ही सरकारी चौरा है वहाँ प्राप ठहर सकते हैं । हम खूब थके हुए थे और अच्छी तरह से भूखे-प्यासे भी थे । इससे हम जल्दी जल्दी पैर उठाते हुए उस चोरे में जिनको मराठी में चावड़ी कहते Ins जा बैठे और कपड़े आदि खोलकर जल्दी जल्दी प्रतिक्रमण करके निद्रा देवी की शरण में पुख से सो गए। सुबह होने पर प्रतिक्रमण करके बैठे हुए, तो पिछले दो-तीन दिनों की थकान शरीर ऐसा जकड़ा सा मालूम दिया जिससे आगे चलने की हिम्मत न हुई इसलिए उस दिन i Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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