Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 79
________________ ( ६४ ) बांधकर सामायिक भी किया करते थे। उनके दिल में शायद ऐसा ख़याल होगा कि धर्म का, व्यवहार के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । ५-७ दिन भोंरगाबाद में ठहर कर दौलताबाद होते हुए हम एक उस छोटे गांव में जाकर रूके जहाँ से सुप्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं लोग देखने जाया करते हैं हम भी दूसरे दिन एलोरा की गुफाएं देखने गए । यद्यपि मुझे उस समय उन गुफ प्रों का कोई इतिहास मालूम नहीं था कि किसने, कब और कैसे ये बड़ी-बड़ी गुफायें बनाई । उन गुफाओं को देखने के लिए सदैव अनेक लोग आते रहते हैं । हमने भी उन्हीं की तरह उन गुकानों को खूब घूमर कर देखीं और पहाड़ की बड़ी चट्टानें काट-काट कर उनमें ऐसे बड़े मन्दिर तथा बड़ी मूर्तियाँ आदि किस तरह बनाई गई होगी, इसका आश्चर्य मुग्त्र होकर अवलोकन करते रहें। कोई ४-५ घण्टे उन गुफाओं को देखने में व्यतीत कर हम समय हो जाने पर वापस उस गांव में आगए और रात्रि वहीं व्यतीत की । दूसरे दिन वहाँ से फिर विहार कर कई गांवों में परिभ्रमण करते हुए हम वारी नामक गांव में गए । वारी गांव का परिचय मेरो जोवन प्रपंच कथा वहाँ पर तपस्वीजी के गुरू आम्नाय वली चार-पाँच साध्वियां थी उनको दर्शन देने की दृष्टि से ही तपस्वीजी ने वहाँ जाना पसन्द किया था। उन साध्वियों में एक साध्वी उसी गांव के एक अच्छे सम्पन्न कुटुम्ब की थी जो बाल विववा हो जाने पर साध्वी बन गई थी । वह मराठी की ६-७ किताबे पढ़ी हुई थीं और उसी प्रदेश में विचरते रहने कारण मराठी भाषा बोलने का उसको अच्छा अभ्यास था । वारी गांव एक छोटा सा कस्बा था जहाँ प्रोसवाल जैनियों के १०-१२ घर थे पर वे सत्र आर्थिक दृष्टि से अच्छे सम्पन्न से थे । वारी गांव 'पेठ' अर्थात् मण्डी की दृष्टि से प्रसिद्ध था । वहाँ पर एक विदेशी व्यापारिक कम्पना का अड्डा था । यह कम्पनी (राली बन्दर्स) नाम से दक्षिण में काफी मशहूर थी और इस कम्पनी की कई जगह प्रॉफिसें थीं । यह कम्पनी खासकर के अनाज की खरीदी किया क ती थी चोर हजारों मग अनाज विदेशों में भेजा करती थी । वारी में इसके दो-तीन बड़े-बड़े गाराम बने हुए थे जो वहाँ रहने वाले दोतीन जैन धनिकों ने बनवायें थे । प्रनाज का संग्रह भी प्रथम ये लोग ही करते थे । और फिर उनसे उक्त कम्पनी बड़े जत्थे में अनाज खरीद लेता थी । इसलिए वहाँ के जैन भाईयों का व्यापार धन्धा बहुत अच्छा चल रहा था । गांव के पास में ही दोंड-मनमाड़ रेल्वे लाईन का छोटा सा स्टेशन था वहाँ से सीजन में अनाज के हजारों बोरे बम्बई आदि स्थानों में भेजे जाते थे । मण्डो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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