Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 71
________________ ( ५६ ) मेरो जीवन प्रपंच कथा आदि करने के लिए एक बर्तन में निकाल रखा था उसको एक बड़े पात्र में भर लिया। मूर्ति पूजक साधुनों के पास तो पानी लेने के लिए मिट्टी के घड़े होते हैं । तथा लकड़ो के बने हुए वैसे ही बड़े आकर के घड़े नुमा पात्र होते हैं, जिसको वे साधु 'लोट' कहा करते है प्रायः वे साधु पानी इसी लोट में लाते हैं और विहार में भी इसी लोट में भर कर साथ ले जाते हैं पर हमारे सम्प्रदाय में केवल लकड़ो के खुल्ले पात्र ही रखने का रिवा न था । इसलिए पानो लाने करने में कुछ असुविधा का अनुभव होता रहता था । हम शौच आदि क्रिया से निवृत हुए और फिर उस थानेदार के वहां से थोड़ा सा दूध लिया और छाछ का बड़ा सा पात्र भर लिया। ५-७ जुवारी की रोटियां और कुछ बैंगन का साग ले लिया । झोंपड़ी में बैठकर हमने वह पाहार कर लिया। मन में खयाल रहा कि शाम तक कुछ खाने-पीने के लिए मिलने वाला नहीं है । उससे पर्याप्त मात्रा में भोजन कर लिया और ऊपर छाछ पीकर परम तृन्तो का अनुभव किया । कुछ पानो भो साथ में रखने के लिए दो-तीन पात्रों में ले लिया। हम अपने कपड़े आदि शरीर पर लपेट कर चलने के लिए झोंपड़ी में से बाहर निकले । इतने में एक चौकोदार जो हमारे रास्ते से अगले पड़ाव पर जाने वाला था, वह भी कपड़े आदि पहनकर थानेदार के पास जा खड़ा हुयी। थानेदार ने कोई कागज उसके हाथ में दे दिया और कुछ बातें कहकर उसे हिदायत दो गयी कि ये बाबा लोग उस गांव को जाना चाहते हैं सो इनको साथ ले जाना और रास्ते में कोई चौकीदार पूछे तो उसे कह देना कि इनको थानेदार साहब ने इस रास्ते होकर जाने की इजाजत दी है, और मुझे भी इनके साथ साथ चलने को कहा है। चौकीदार ने थानेदार को सलाम किया और वह अपने घर में जाकर अपनी औरत से कुछ कह कर, 'चलिये बाबाजी' ऐसा हमको कहता हुअा रास्ते पर चलने लगा। थानेदार ने भी नम्र स्वर में "नमो नारायण" कह कर हमको हाथ जोड़े और कहा कि प्राप निर्भय होकर चले जाइये रास्ते में कोई खतरा नहीं होगा इत्यादि जिस तरह हम कल चले उस तरह से आज भो चलने लगे । रास्ता प्रायः कल के जैसा ही था, उसी तरह एक के बाद एक पहाड़ो पाती रही मौर हम चढ़ते उतरते और उनको लाँघते रहे । वैसे ही छाटे बड़े तोन-चार नाले रास्ते में आये । अन्दाजन चारेक माईल के फासले पर हमने एक अच्छो सी चट्टान पर बैठकर पानी पीया, दिन का आखिदशी पानी पी लीया । उस समय दिन के कोई बारह बजे होंगे, चौकीदार को हमने पूछा कि भैया अब कितने घण्टे का आगे रास्ता है तो वह बोला कि बाबाजो कम से कम चार घण्टे लगेंगे। आप जरा जल्दी जल्दी पर उठाना हमने कहा भैया तुम जैसे चलोगे वैसे हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे। तब उसने कहा कि बाबाजी मैं तो इतना जल्दी चलता हूँ कि दो घण्टे में ही रास्ता पार कर सकता हूँ। मेरा तो हमेंशा का काम है पर आपके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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