Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 76
________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जोवनानुभव मूर्तिपूजक प्राम्नाय वाले थे तो भी स्थानकवासी साधुनों का भी यथा योग्य प्रादर किया करते थे । हम लोग वहाँ पर फैक्टरो के एक मकान में जाकर ठहरे, ५-१० भाई-बहन व्याख्यान सुनने के निमित्त भी आए। दो-तीन दिन बाद वहीं एक मूर्तिपूजक अाम्नाय के साधु भो विहार करते हुए आये, वे साधु प्रायः उन कच्छी भाईयों के परिचित थे । उनके साथ दो-तीन भाईबहन थे तथा एक नौकर भो था जो उनके वस्त्र-पात्र पोथो पन्ना आदि उपकरण लेकर चलता था । अगले दिन उनमें का एक भाई चालीस गांव पहुँच कर वहाँ के भाईयों को सूचना दी की कल अमुक मुनिमहारान यहाँ पधार रहे हैं, सा आप स्वागत आदि की व्यवस्था करें । तद्नुसार कच्छो भाई जिनके आठ-दस परिवार वहाँ रहते थे उन्होंने सुनिमहाराज के स्वागत को तैयारी की । जिस लम्बे चालनुमा मकान में हम ठहरे थे, उसो मकान के एक अच्छे से कमरे में उनके ठहरने का प्रबन्ध किया गया। दो-चार ध्वजा-पताकाए भी मकान के आँगन में बांध दी गई । हम जिस कमरे में ठहरे थे वह मामूलीसा कमरा या । उनके कमरे में जाने का रास्ता हमारे वाले कमरे के आगे होकर हो जाता था । हमारे और उनके कमरे के बीच में ५-६ कमरे और थे, जिनमें मालिकों का सामान भरा हुआ था। कमरों के आगे सात-पाठ फुट चौड़ा, ऐसा लम्बा बरामदा था । बरामदे के दूसरे छोर पर जहाँ मुनिमहाराज के ठहरने का कमरा था, उनके आगे अच्छासा लकड़ो का पट्टा रब दिया गया। उसके उपर जरो, मखमल, रेशमी कपड़े आदि के बने हुए हुए चंदुये बांध दिये गए। बैठक को पीछे की ओर वैसी ही पछाइयाँ लगा दा गई। ठीक नौ बजे के करोब मुनिमहार ज फक्टरी के बड़े श्रावकों ने तो वहाँ से कुछ आगे जा कर सड़क पर उनका स्वागत किया । । जसको गुजरात में सोमैया कहते हैं) बैंड-बाजे के साथ उनका फैक्टरी में प्रवेश कराया गया। उस समय श्रावकों के सिवाय फैक्टरी के अनेक अन्यजन भी मम्मिलित हुए। बहनें गीत गाती हुई चल रही थीं। हम लोगों को जब यह हाल मालूम हुआ तो कुछ संकोच सा महसूस हुआ। हम लोग अपने कमरे में एक तरफ किवाड़ कुछ टेढ़े कर बैठे-बैठे स्वाध्याय करने लगे । इतने में वे मुनिमहाराज मकान में पहुँच गये और श्रावकों के जय-जयकार के साथ हमारे मकान के दरवाजे के आगे हाकर उनके स्थान पर गए । वहां पर कमरे में जाकर कुछ कपड़े आदि उतारे पोर फिर अपना एक अच्छा सा प्रासन ले कर उस पट्टे पर आकर बैठ गये । मुनिमहाराज का वर्ण गेहूँए रंग का था, शरीर अच्छा भरावदार था, कद मध्यम प्रकार का था । अावाज अच्छी और सुरीली थी सिर पर खासे केश थे और दाढ़ी मूछ भी केशों से प्रच्छो भरी हुई थी। इसमे मुझे आभास हुआ कि हम लोगों को तरह उन्होंने उन दिनों केश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110