Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 56
________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जोवनानुभव बारह बजे के करोब उठकर बैठा हुआ । उसका संथारा बिछौना) उसके बड़े भाई मुन्नालालजो के पास ही करने में पाया था। एक तरफ बालक मोतीलाल भी सोया हुआ था तपस्वीजी तया अचलदासजी स्थानक के एक दूसरे कोने में सोये हुए थे। स्थानक में दो सीदिया थी, एक पागे से पाने की और दूसरी पीछे से पाने की, जिसके द्वारा श्राविकायें प्राती जाती रहतो थीं। बारह एक बजे नवदीक्षित ने अपने बड़े भाई को जगाकर कहा- “भाई साहब मेरे पेट में खूब दर्द हो रहा है, मुझे टट्टी जाने को हाजत होरही है।" स्थानक में तो अंधेर। ही था, दिया बती का नामोनिशान भी नहीं था। इसलिए मुन्नालाजी ने कहा कि इस पिछली सीढ़ियों से नीचे उतर कर पास वालो जो गली है उसमें टट्टी हो आयो । मुन्नालालजी नींद में थे, वह भाई, अपने पास में रखे हुए जरी वगैरह के कपड़ों को संभालकर रखी हुई बड़ी सी गठरी को उठाकर अपनी बगल में दबाकर झट से पीछे की सीढ़ियों द्वारा नीचे उतर गया और पास वाली गली में होकर नौ-दो ग्यारह हो गया। घंटा, डेढ़ घंटा बीत गया पर भाई वापस क्यों न आया उसकी फिकर में मुन्नालालजी उठे मौर प्रथम तो पिछली सीढ़ियों से नीचे उतर कर गली में इधर उधर देखने लगे कि भाई कहीं टट्टी जाने को बैठा है या नहीं ? उन्होने उसका नाम लेकर ग्रावाज भी दो, मगर कोई उत्तर नहीं मिला तब उन्होंने प्राकर तपस्वीजी को जगाया और भाई के गुम हो जाने की बात कही। तप-वीजी को जरुर बड़ा ग्राघात लगा था उन्होंने हमें भी जगाया। परन्तु उनको इस बात की जानकारी तो तब हुई कि वह भाई वे सब कीमती वस्त्र उठाकर रवाना हो गया है । वह जा स्थानक (उपाश्रय) था उसके नीचे के भाग में कोई रहता नहीं था । एक बुढ़ा नौकर जो कि साफ-सफाई करने के लिए रहता था, उसको जगाने, मैं आया। मगर उसने तो ठडे कलेजे से उत्तर दिया कि महाराज मैं क्या जानू ? मैं ऐसी अंधेरी रात्रि में ज कर किसको जगाऊ, और कहूं वगैरह सुबह होने पर खबर निकलवाना । दूसरे साधुश्रा को क्या लगा होगा। उसकी तो मुझे खास कोई कल्पना नहीं आयी। परंतु मेरे मन में तो एक अघटित घटना सी हो गयी ऐसा महसुस हुआ, बिछौने में बैठे-2 नवकार मंत्र का जाप करने लगा, ऐसा कहने में पाया था कि कोई अकल्पित घटना सी होती मालूम हो तो नवकार मन्त्र का जाप करते रहना चाहिये । सुबह हुई हम सब साधुओं ने प्रतिक्रमण और पडिलेदाणा वगैरह क्रियाएं कीं । इतने में स्थानक के उस नाकर ने आसपास में रहने वाले श्रावक भाइयों को जाकर यह सारी बात कही। दुरन्त 2-4 श्रावक भाई स्थानक में दौड़े आये, और तिक्खुतों - तिक्खुतो करते हुए तपस्वीजी को वन्दना की, और मुह के आगे पंचीयासा कपड़ा रखकर उदासीन चहरे और गमगीन भाव से पूछने लगे कि महाराज यह क्या हुआ? तपस्वीजी ने कहा- 'भाईयों ! मुन्नालालजी के पास वह सोया हुना था और प्राधी रात को पेट में खूब दर्द हो रहा है ऐसा कहकर शौच जाने के लिए पिछली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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