Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 61
________________ ( ४६ ) मेरो जीवन प्रपंच कथा यह प्रवास हमारा लगभग १५-२० दिन जितना लम्बा था और बीच-बीच में ३-४ बार हमको ऐसे जंगल में रात्रि व्यतीत करनी पड़ी थी। एक जगह, जहाँ २-४ प्राम के वृक्ष थे वहाँ हमको रात्रि व्यतीत करने का प्रसंग आया । वहाँ आस-पास के वृक्षों के नीचे शाम होते ही ५-१० हिरणों का झुण्ड पाकर बैठ जाता था। दूर जंगल में कहीं चीते वगैरह हिंसक पशुओं की आवाज सुनाई पड़ती तो वह हिरणों का झुण्ड हमारे पास-पास आकर बैठ जाता हमको भय लगता रहता था कि शायद इन हिरणों की वजह से वह हिंसक पशु इस तरफ दौड़े न पाएँ । इस तरह हम चलते हुए नर्मदा नदी के तोर पर बसे हुए बड़वाह नामक अच्छे से कस्बे में पहुँचे । बड़वाह के सामने किनारे पर ओंकारेश्वर का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है । जहाँ राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि देशों के हजारों लोग प्रतिवर्ष यात्रा करने आते हैं । बड़वाह, इन्दौर के होल्कर राजाओं का ग्रीष्म निवास की दृष्टि से एक अच्छा सा हिल स्टेशन समझा जाता है । हम जिन दिनों बड़वाह पहुँचे उन्हीं दिनों में होल्कर महाराजा ने एक नयो मोटर कार विलायत से मंगवाई थी । इस मोटर में बठकर होल्कर महाराज शाम के समय अपने महल म निकल कर बड़वाह के बाजार में होते हुए कहीं शिकार आदि के लिए जाया करते थे । हम बाजार के एक जैन श्रावक की दुकाननुमा जगह में ठहरे हुए थे, तब हमारे मकान के सामने होकर निकलने वाली उस मोटर गाड़ी को हम बड़े चाव से देखा करते थे। गांव के अन्य लोग भी उसे देखने के लिए बाजार में इकठ्ठ हो जाते थे। बिना घोड़ों से चलने वाली इस नई तरह की बग्घो जैसो गाड़ी में बैठकर जाते हुए महाराजा को लोग झुक झुक कर मुजरा करते रहते थे । हमारी ही तरह लोगों ने भी इस तरह बिना घोड़ों से चलने वाली इस अजीब गाड़ी को जिन्दगी में पहली ही बार देखी थी। मेरे मन में कई दिनों तक इसका कौतुहल ब। रह कि यह गाड़ी किस तरह सड़क पर दौड़ी जाता है । पेट्रोल और गाड़ी में लगे हुए. इजि । प्रादि की किसी को कोई कल्पना नहीं थीं । बड़वाह से हम महेश्वर गये, जहाँ नर्बदा नदी के किनारे पर सुप्रसिद्ध होल्कर महाराना महल्याबाई ने बड़े सुन्दर घाट बनवाये हैं। वहाँ पर नर्बदा नदो का बहुत सुन्दर दृश्य दिखायी देता है । वहां से वापस आकर नर्बदा नदी को पार करने के लिए बड़वाह से कुछ दूरी पर, बने हुए रेल्वे के पुल पर होकर, हम सामने वाले किनारे पर पहुँचे अन्य लोग तो नावों में बैठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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