Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 62
________________ नवासी संप्रदाय का जीवनानुभव ( ४७ र नदी को पार करते रहते हैं, परन्तु जैन साधु को नाव में बैठता, निषिद्ध है । इसलिए नदो दि को पार करने के लिए उसी रास्ते होकर वे आते जाते हैं. जहाँ पुल आदि का साधन । हम उस रास्ते करते हुए दो तीन दिन बाद एक छोटे गांव में पहुँचे, जहाँ जैन श्रावक ई घर नहीं था । केवल २५-३० किसानों आदि के घर थे । एक किसान ने हमें रात को हरने के लिए पशुओं के बाँधने के स्थान के पास जो चौतरा सा बना हुआ था और ऊपर परेल का टूटाफूटा छप्पर था, वहाँ जगह बतलायी । हम वहाँ ठहर गये परन्तु उसमें चारों रफ खुली हवा प्राती रहती थी, उस हवा के लग जाने से मुझे जोरों की सर्दी होगयीं सुबह होते २ तो खूब जोर से बुखार चढ़ श्राया । ऐसी स्थिति में हमें उस दिन विहार रना स्थगित रखना पड़ा । दोपहर होने पर तपसीजी और एक अन्य साधु किसानों के यहाँ कुछ भिक्षा माँगने के लिए गये । वे किसान केवल जवारी को रोटी और उसके साथ में बैंगन, प्याज आदि की सजा बनालेते थे, साथ में छाछ का उपयोग करते रहते थे । तपसीजी ४-५ किसानों के वहाँ जाकर आधी२ जवारी को रोटी भिक्षा के रूप में माँग लाये कुछ थोड़ी सी बाछ भी ग्राने पान में ले आये। साधु ने उस प्रहार से अपनी कुछ भूख मिटायो परन्तु मैं तो बुखार में सिकुड़ कर सारा दिन पड़ा रहा । जिस किसान के मकान के छप्पर में हम टिके थे, वह किसान शाम को जब खेत से घर पर आया तो उस मालूम हुआ कि हम लोग उसके मकान में उसी तरह टिके हुए हैं । जब हमने पिछली रात्रि के लिए उससे मकान मांगा तो कहा कि भाई सुबह दिन उगते ही हम यहां से चले जायेंगे। किसान सुबह जल्दी हो उठकर ने पों को लेकर खेत पर खुला गया । घर में उसकी स्त्री थो गोटियां बनाकर खेत पर चली गयों घर में शायद दो-तीन बच्चे थे । अपने पशुओं को लेकर घर पर आया तो हमें वहीं देखकर उसे कुछ आश्चर्य सा हुआ । वह भी ६-१० बजे 13 किसान जब शाम को ) मालवे के किसान कुछ भद्र स्वभाव के होते हैं और वे साधु सन्त, ग्रतिथि आदि क तरफ भक्ति भी रहते हैं । उस किसान को हमारे नारे दिन वहीं रहने की बात का पता लगा तो वह नम्र भाव से कहने लगा कि बाबाजी महाराज आपने कुछ खाब पीया या नहीं ? उसे कुमारी बात कुछ बता दो गयी और मैं सारा दिन बुखार में पड़ा हुआ सिसक रह था यह देखकर उसके दिल में बहुत दया हो भाई। वह कहने लगा कि महारान आपके इन छोटे साउ Jain Education International पिलाने के लिए दूध गरम करके ला देता हूँ आप इनको कुछ लिाद, जिसे कुछ गर झा जायेी इत्यादि । वे किसान चाय का नाम भी नहीं जानते थे और लोंग ग्रादि मसाले वालो होत्रों का भी उनको कुछ खयाल नहीं था । तपस्वोजी ने कहा कि भाई हम साउ लोग रात को न पानी पीते हैं, न दूध हो लेते हैं और न किसी प्रकार का रोटी यादि का भोजन हो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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