Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 68
________________ पानकवासा सप्रदाय का जीवनानुभव सके हाथ में दे दिया, पर आश्चर्य वश उसने, उस चौकोदार को पूछा कि ये कौन लोग हैं ? और का से तेरे साथ पा रहे हैं ? यह इनका कैसा स्वांग है : मुंह बाँध रखा है, हाथ में कुछ लम्बी डंडो सी ले रखी है इत्यादि । वह चौक़दार धीरे से कहने लगा बाबू ये बनिये के गुरू हैं और साधु कहलाते हैं। ये लोग मेरो चौकी वाले गांव में कल आये और इनका विचार आगे भुसावल की तरफ जाने का है सो सोधा रास्ता जानकर ये इस रास्ते से पाये हैं कोई लुब्बे-लं को नहीं है । आप इनसे बातें करके सब हकीकत समझ सकंगे इत्यादि । सुनकर वह हमारी तरफ प्राया और हमसे कहने लगा क्या आप साधु बाबा हैं, और यहां किसलिए आये हैं, और कहाँ जा रहे हैं ? यह तो बड़ा घोर जंगल हैं और इधर खासकर क ई श्राता जाता नहीं है । हमारी यह जगलात के महकमें को चौकी है । इस सारे जगल की निगरानी रखना हमारा काम है। कोई चोर-डाकू आदि इस जगल में वही लुक-छीप न जायें इसके लिए हमें यहां पहरा देना पड़ता है। जो कोई हमारे इस जंगल में चला पाता है तो हम उसे पकड़कर हमारा जो बड़ा चौकीदारी का थाना है, वहा हमें भेज देना पड़ता है। उसने फिर उस साथ वाले चौकीदार से पूछा कि इन्होने खाना-पीना कहां किया और ये सारा दिन ऐसे विकट रास्ते में कैगे पाए इनके पैरों में न जूते हैं न सिर पर कपड़ा है इत्यादि ? तब उस चौकीदार ने हमारे विषय में अपने गांव के मुखिया से जो कुछ सुना था वह कह सुनाया। सुनकर उस बड़े चौकीदार का मन, कुछ शांत, हुआ और हमसे कहने लगा कि बाबाजी अब रात हो रही है इसलिए प्रा लोग यह हमारी एक झोंपड़ी है उसमें ठहर जाईये । यहां पर रात के समय चोता आदि जानवर आते रहते हैं, इसलिए सारी रात हमारे इस मैदान में लकड़ियां जलती रहती है और हमारे दा-तीन नौकर भी पहरा लगाते हैं । हम उस झोपड़ी में जा कर शांति से बैठे और कपड़े आदि खोलकर तथा कुछ विश्रान्ति लेकर जैसे-तैसे अतिक्रमण किया । हम सभी खूब थके हुए थे इसलिए अपने कपड़े बिछाकर सोने की तैयारी करने लगे। इतने में उस चौकी का जो मुख्य थानेदार सा था वह घोड़े पर सवारी करता हुआ वहाँ पहुँचा । उसके ठहरने के लिए अलग एक ठोंक सा घर था, जिसमें वह रहा करता था। उस दिन वह कहीं जगल में गया हुआ था। उसके पाने पर उस छोटे चौकीदार ने हमारी प्राने तथा झोंपड़ो में ठहरने की बात कही । वह थानेदार जाति का ब्राह्मण था और कुछ पढ़ा लिखा था । निमाड़ के किसी कस्बे में रहने वाला था पर वर्षों से उस चौकी का वह खास काम सम्भालता था। बोच-बीच में वैसी अनेक चोकियाँ उस पहाड़ी जगल में थी, जहां पर उसको निगरानी पर बार बार जाना पड़ता था। वह आज किसी दूसरी चौकी की निगरानो करने चला गया या । उसने जब सुना कि बनिये लोगों के कुछ साधु प्राज इस चौकी पर आये हैं तो उसको कुछ आश्चर्य हुआ और कुछ विचारने जैसी बात भी लगी। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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