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कबासो संप्रदाय का जीवनानुभव
झाड़ी और बड़ो ऊँची घास हमें लांघना था। साधु के प्राचार के मुताबिक ऐसे रास्ते पर चलना और हरी घास तथा झाड़ियाँ को स्पर्श करना निषिद्ध हैं। पर हमारे लिए कोई चारा नहीं था। इसलिए हम उसका कुछ भी विचार नहीं करते थे और गस्ते को किसी तरह तय करना ही हमारा मुख्य लक्ष्य रहा । कोई घण्टा भर में हम उस पहाड़ी की. ऊपर की चोटो पर पहुंचे वहां से हमने आगे देखा तो सामने की ओर एक उससे भी ऊँची पहाड़ी दिखाई दी। चौकीदार ने कहा कि बाबा जो हमें इस पहाड़ी से नीचे उतरकर सामने दिखाई देने वाली बड़ी पहाड़ी पर चढ़ना है। इस प्रकार तीन पहाड़ियाँ जब हम पार करेंगे तब वह हमारी बड़ी चौको आयेगी । इसलिए आप जरा फुर्ती से कदम उठाते रहना इत्यादि । हमने कहा चौकीदार जी आप हमारी चिंता न करें, हम आपके पोछे पीछे उसी तरह चलते रहेंगे, जैसा आप चल । चाहते हैं ।
उस पहाड़ो से हम कोई आधे घण्टे में नाचे उतर गए । वहाँ पर एक छोटा सा पानी का झरना बह रह था । उसमें से चौकीदार ने कुछ पानी पोया । उसने कहा बाबाजी श्राप भी कुछ पानी पीलें, यह पानी बहुत मीठा है, ऐसा पानी आगे नहीं मिलने वाला « इत्याद । हमने चौकीदार को कहा कि भाई हम साधु लोग ऐसा पानी नहीं पीते हैं । पर हमें भी कुछ न्यास लगी थी । जो पानी हम पात्र में भरकर साथ लाये थे उसको भी क्षेत्र मर्यादा पूरी हो गई होगी ऐसा सोचकर हमने भी वह थोडा थोड़ा पानी पो लिया । समय कोई ११-१२ बजे जितना हुआ होगा, क्याकि घड़ो किसी के पास नहीं थी। हम साधु लोग तो घड़ी रख ही नहीं सकते थे, परन्तु उस चौकीदार के पास भी आज के युग की तरह कोई घड़ी नहीं थी । शायद उस चोकीदार ने ता अपने जीवन में ऐसी घड़ी देखो हो नहीं होगी ।
उस झरने को पार करके हम अगली पहाड़ी पर चढ़ने लगे। इसका रास्ता पहली पहाड़ो की अपेक्षा अधिक विषम और पथरीला था। रास्ता घने वृक्षों से आच्छादित था परन्तु पशुओं के जाने माने के कारण कुछ चौड़ा सा था हम जल्दी-जल्दी पैर उठाते हुए पहाडी पर चढ़ते गए । कोई २३ घण्टे वाद उस पहाड़ो की चोटी पर पहुँचे, वहाँ से प्रागे देखते हैं ता इससे कुछ छोटी रन्तु वैसी हा पहाड़ो सामने दिखाई दी . चौकीदार ने कहा उस पहाड़ी को पार करने के बाद उसको अगली पहाड़ी पर वह बडी चौकी है, जहाँ हरें. पहुँचता है। सुन कर हमें कुछ विचार तो हा कि अभी तो इतनी घाटी और पार करनी है, शापद कहीं रात न पड़ • जाय । इस भय से हम लोग जल्दो-जादा चलने लगे । चौकीदार तो पूरा अभ्यस्त और रास्ते
का जानकार था इसलिए उसके लिए कोई खास वात नहीं थ'। वह तो अपनो हमेंशा की रफ्तार के मुताबिक चल रहा था और बाच बाच में बोड़ियाँ फ+ता जाता था । हम लोग चुप-चाप
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