Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 58
________________ सातवासी संप्रदाय का जीवनानुभव ( ४३ ) हजारों रूपये बनियों के बर्बाद करवाते रहते हैं । मुझे इन भाईयों ने आकर दोक्षा महोत्सव को बात कही, तब मैंने धंसकर ना कही थी। नाहक का मेरा हजार-पाँचसौ का माल सामान गंवाया इत्यादि ।" थोड़ी देर चुप रहने के बाद सेठ बोले “पाँचवें पारे का ये कुप्रभाव है । अपन सब भारी कर्मी जीव इस बारे में जन्मे हैं आज कोई केवल ज्ञानी विद्यमान नहीं है, नहीं तो उनके पास जाकर पूछते कि भगवान वह भारी कर्मी जीव कहाँ जाकर छुपा है। पता लगने पर तुरन्त सरकारी सिपाहियो द्वारा रस्म से बंधवा कर मंगवाता वगैरह । खैर भावीभाव परन्तु प्राप साधु महाराजों को चाहे जिसे मुण्डकर चेला बढ़ाने का मोह न रखना चाहिये ।" ऐसा कहकर सेठ चले गए । इस घटना के बाद उसी दिन दापहर को हम साधुओं ने उस स्थानक से विदाई ली और दक्षिग के लिए रास्ता नापना शुरू किया । . इन्दौर से प्रस्थान इन्दौर से दो चार मील दूरी पर स्थित गांव में जाकर रात रहे । शाम को प्रतिक्रमण किया और जेसे पिछली रात को कुछ हुआ ही नहीं वसे मोनधारण करके हम पांचों साधु सो गए । दूसरे दिन सुबह दक्षिण की ओर जाने वाली महू-पासेरगढ़ को सड़क पर क्रम से आगे बढ़े । मेरे मन में देश दर्शन का उत्साह बहुत रहा करता है। प्राकृतिक सौंदर्य, दर्शक पर्वतों, जंगलों, नदियों वगैरह को देखकर मेरा मन हमेशा प्रफूल्लित होता रहता है । मालवे में धार, इन्दौर, रतलाम, उज्जैन वगैरहू स्थानों में परिभ्रमण करते हुए ऐसे कोई खास प्राकृतिक दृश्य देखने में नहीं पाये थे । मालवे की भूमि लगभग समतल होकर खास उपजाऊ कहलाती है । उसमें बीच२ में पहाड़ों की या बड़ी२ नदियों की सुन्दर दृश्यावलियां दृष्टिगोचर नहीं होती । हम इन्दौर के बाद महू स्थान छोड़कर आगे बढ़ने लगे तब नर्बदा की घाटी का प्रदेश पाने लगा। महू से कोई २०-२५ माईल दूर बड़वाह नामक कस्बे में जैसा स्थान नर्बदा के तट पर बसा हुआ है। उसके सामने वाले नदो के तीर पर ओंकारेश्वर का प्रसिद्ध तीर्थधाम आया हुआ है । हमारा वैसे तीर्थ स्थानों को देखने के लिए जाना नहीं होता था। मगर मार्ग में कोई दुर्शनीय स्थान आते तो अवश्य देखने का प्रयत्न करते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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