Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 43
________________ ( २८ ) सोचा कि मेरे वचन का पालन हो जायगा और इस तरह नगर निवासी जनों का संकट भी दूर हो जायगा । मेरी जोवन प्रपंच कथा दूसरे दिन साठ ऊँटों पर वे बोरे लादे गये और पूरे लवाजमे के साथ हजारों नगर जनों को साथ लेकर नगरसेठ उस सरदार की छावनी की तरफ चले और कुछ दूरी पर जा कर ठहर गये । सरदार को कहलाया कि उज्जैन नगर के सब महाजन और बड़े प्रजाजन आपकी मांग को पूरा करने के लिये आये हुए हैं । ग्राप छावनी से बाहर आकर उन सब प्रजाजनों से मिलें और बातचीत करें । सरदार तुरन्त उठकर अपने खेमें से निकल कर बाहर आया कुछ दो चार अंग रक्षकों के साथ महाजनों के सम्मुख ग्राकर उनसे मुजरा आदि जो कुछ करने का रिवाज था वैसा करके बोला कि आप उज्जैन के प्रजाजनों का दर्शन कर मैं बहुत ग्रानन्दित हुआ है । तब प्रजाजनों के मुखियात्रों ने हाथ जोड़कर कहा कि सरदार सा० आपकी पैसे की मांग को पूरी करने के लिये हमारे नगर के सेठ साठ ऊँट भरकर रुपये लाये हैं। जिनको आप स्वीकार करें और आप इनको लेकर तुरन्त ही अपनी सेना में ढढेरा पिटावादें कि वे तुरन्त यहाँ से वापस लौट जाय । आपकी सेना जब तक रवाना नहीं हो जाती तब तक हम सब लोग यहाँ बैठे रहेंगे । सुनकर सरदार ने तुरन्त अपनी सेना के कमाण्डर को हुक्म दिया कि तुरन्त सब सेना तैयार होकर यहाँ से चलदे । सेना को जो कुछ खाने पीने को देना है वह मैं यहाँ से जाने के बाद अगले पड़ाव में दूँगा- इत्यादि रस्म पूरी हुई और सेना ने तुरन्त वहाँ से अन्यत्र कूच करदी | शाम को सब नगर जन सेठ साहब को साथ लेकर उनके घर आये और इस प्रकार नगर की रक्षा के लिये सेठने जो प्रद्भुत उदारता दिखाई - उसके लिये अभिवादन किया। दूसरे दिन सारे नगर में इसकी खुशी में बड़ा उत्सव मनाया गया । श्रावकों के मुख हवेली, सेठ के नगर सेठ की यह कथा उज्जैन के पुराने वृद्ध हमने सुनो। हम जब उज्जैन चातुर्मास में थे तब उन नगर सेठ की वह कुटुम्ब की श्रार्थिक श्रवनति के कारण निलाम की गई जिसको किसी भी नगर निवासी ने नहीं ली । कई दिनों बाद बाहर के किसी पैसे वाले ने आकर पानी के मूल्य में उसे खरादा । उस हवेली में शीशम की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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