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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
और आगे भी करेंगे । यहाँ पर प्रसंग वश हम केश लुचन के विषय में कुछ अनुभव जन्य लार प्रदर्शित करना चाहते हैं ।।
जैन साधुओं के प्राचारों में केश-लुचन वाली क्रिया सबसे कठिन समझी जाती है । यों इन साधु का जीवन एक प्रकार से सबसे अधिक सुखी जीवन है। जैन साधु का वेश पहन लेने पर | कर उसको न कोई कमाने खाने को चिन्ता रहती है, न किसी प्रकार के शारीरिक परिश्रम करने की आवश्यकता रहती है, न उसको अपने कुटुम्ब कबोले के पालन को हो कोई चिन्ता होती है। साधु-वेश पहन लेने के बाद उसको हमेशा अच्छा खान-पान मिलता रहता है-जो उसको भिक्षा द्वारा भक्त लोगों के यहां से सम्मान पूर्वक मिलता रहता है। वह सदैव सुबह शाम इच्छानुसार यथेष्ट भोजन करता रहता है। उसको पहनने प्रौढ़ने के लिये यथेष्ट अच्छे वस्त्रादि मिलते रहते हैं और रहने के लिये अच्छे मकानात ! वह अपनी इच्छानुसार देश पर्यटन करता रहता है और एक प्रक र से आरामदायक जीवन व्यतीत करता है । गृहस्थों के यहाँ जाकर खान पान आदि योग्य वस्तुएँ वह भिक्षा रूप में ले आता है। बीमारो आदि में भक्त लोग उसकी यथेष्ट परिचर्या करते रहते हैं और इन साधुओं में जो कोई अधिक योग्यता वाला होता है और व्याख्यान प्रादि कला में कुछ निपुण होता है तो समाज में उसको बड़ा सम्मान मिलता रहता है । कभी कभी ऐरो साधनों के हजारों धनिक लोग भत भो बन जाते हैं ।
इस प्रकार के सुखो साधु जीवन में कभी कभी कई नव-दीक्षितों को जो काई अधिक कष्ट दायक क्रिया का पालन करने का प्रसग उपस्थित होता रहता है वह केश-लुचन विषयक क्रिया है।
___ जैन साधु के शास्त्रोक्त प्राचार धर्म में यह विधान है कि साधु (साधु और साध्वी दोनों का अर्थ है ) कम से कम वर्ष भर में एक बार अवश्य सिर पर उगे हुए केशों का लुचन करे। अन्य धर्म के बाबा, सन्यासी आदि की तरह जटा बढ़ाने से उसमें जू आदि को उत्पत्ति होतो है और उसका परिहार करना हिंसा-सूचक कार्य है। इस कारण जैन साधु को अपने मस्तक के अोर पुरूष को दाढ़ी मूछ के भी केशों का लुचन वर्ष में एक बार तो अवश्य करना चाहिये । अन्य साधु सन्यासियों की तरह वह नाई या हज्जाम से केशों का मुण्डन या कर्तन करा नहीं सकते । क्योंकि वह गृहस्थ द्वारा कराना होता है जो साधु के लिये अनाचार रूप है । इस प्रकार साधु को केश लुचन करना अनिवार्य होता है और उसका पालन जैन साधु सम्प्रदाय में क.म मे कम जहाँ तक मेरा ज्ञान है स्थानक वासी सम्प्रदाय के साधु वर्ग में तो अवश्य होता रहता था ।
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