Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 49
________________ ( ३४ ) मेरी जोवन प्रपंच कथा मंजिल में एकांत सा खपरेल के नीचे का भाग है, उसमें ले जा कर रखो। कल इसकी व्यवस्था को जायगी । फिर उस नव-दीक्षिता को डरा-धमका कर उस बुढ़े नोकर के साथ बड़े स्थानक में भिजवा दी । नोकर ने भी उसे अच्छी तरह डराया धमकाया इसलिये वह डर के मारे चुपचाप स्थानक में चली आई और स्थानक के पिछले भाग में जो ऊपर जाने वाला छोटा सा जीना था, उसमें होकर उसे वहाँ रख दिया । वह अर्ध-मूच्छित सी हो गई थी। हमको तो इसका कुछ पता नहीं था । परन्तु शायद तपस्वीजी महाराज को इसका पता था । सारी रात वह बाई वहाँ उसी दशा में रोती हुई, सिसकती हुई पड़ी रही। दूसरे दिन सुबह साध्वीजी बड़े स्थानक में आई और ऊपर उसके पास गई, उसको कुछ मीठे वचनों से कहने लगो । परन्तु उसने हठ पकड़ लो और कहने लगी कि मुझे तुम अपनी माँ के पास भेज दो । मैं अब तुम्हारे पास किसी तरह नहीं रहना चाहतो । उधर दूसरे दिन वह आदमी पूछते पाया तो उसे कह दिया कि वह तो रात ही को यहाँ से गुपचुप किसी के साथ भाग गई है, हमें कुछ भी पता नहीं है-इत्यादि । उधर साध्वीजी ने पाकर तपस्वीजी महाराज से सारा किस्सा कह सुनाया । तब मैंने तपस्वी जी से कहा कि जब इसकी इच्छा साध्वीजी के पास रहने की नहीं है तो इसे इसको माता के पास भेज देना ही हमारा दयामय धर्म का काम है। इत्यादि कुछ बातें कह कर एक प्रोढ श्राविका को बुलाकर कहा कि तुम स्त्री के पहनने लायक कुछ कपड़े लाकर इस बाई को पहना दो और गुपचुप इसको स्टेशन पर ले जाकर टिकट कटवा कर गाड़ी में बिठा दो, जिससे यह अपने गांव, अपनी माँ के पास चली जाय । कुछ ५, ७ रुपये भी इसको दे दो । तद्नुसार वैसा किया गया और उस बाई को गाड़ी में बिठाकर रवाना कर दिया गया। केश-लंचन विषयक कुछ विचार यू तो जैन साधुओं का आचार-धर्म अन्य सभी साधु सन्यासियों के प्राचार-धर्म से अधिक कठिन है । इसके पालन में बहुत कुछ आत्मसंयम और इन्द्रियदमन की आवश्यकता एवं अपेक्षा रहती है । जैन साधु की जीवन चर्या कैसी होती है-इसका कुछ सूचन हमने यथा स्थान किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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