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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
कुछ मनोबल का और कुछ विचार को दृढ़ता का सहारा लेकर धीरे धीरे उस कष्ट को सहज भाव से सहन कर लिया । इसका कुछ वर्गन अगले प्रकरण में दिया जा रहा है ।
बात तो मैं उक्त किशोरो माध्वो के केश लुचन की कर रहा हूँ । जब गुणो साध्वी जी ने उसके केशों का लोव करना चाहा तो वह बिल्कुल इन्कार कर गई । यों उसके वेश छह पाठ महिनो के कारण काफो बड़े हो गये थे। दिखने में आज की नव तरुणियां जिस प्रकार बॉब कट कराती रहती है, वैसे ही उसके सिर के केश दिवाई देते थे । गुरूगो साध्वोजी ने उसके केशों का लोच करना बड़ी मुश्किल से प्रारम्भ किया तो दो चार चाकी वे श उखाड़ने के साथ हो वह चिल्ला उठती और उठकर खड़ी हो जातो । साध्वोजो को बड़ा धर्मसंकट मालूम दिया। वह किसी तरह केश लोच कराने को तत्सर नहीं हुई और इसके लिये उसे कुछ मारपीट भी सहनो पड़ी-इत्यादि कारणों से त्रस्त होकर वह गा चू, भाग जाने की बात सोचने लगी । परन्तु जाय कहाँ ? सर्वया व्यवहार से अबोध थी। कहीं कोई सहारा नहीं था । किसी प्रकार उसने एक गृहस्थ की कन्या के द्वारा अपने ससुराल में समाचार भिजवाया कि मुझे तुम यहाँ पाकर कष्ट से छुड़ा ले जायो । ससुराल में से उसका कोई देवर था जेठ दो चार दिन बाद वहाँ पहुँचा । उसको पता नहीं था कि मेरो भोजाई कहाँ पर है और किस अवस्था में है । इधर उधर पता लगाने पर मा नूम हुआ कि लूणमण्डो में एक धर्म स्थानक है जहाँ कुछ साध्वियां रहती हैं, वहीं वह होगी।
कुछ साँझ हो गई थी। वह उस स्थानक के बाहर पाया और पूछने लगा कि यहाँ कोई जैन साध्वी है। साध्वियों ने अन्दर सुना कि बाहर कोई पूछ रहा है। वह नव-दीक्षित साध्वी समझ गई कि मुझे कोई लेने आया है । परन्तु गुरूगीजी साध्वो तुरन्त रहस्य समझ गई और वह सोवने लगी कि यदि कोई पुरूष माकर इस शिष्या को यहाँ से ले जाने का प्रयत्न करेगा तो उसमें हमारी कुछ फजिहत होगी। इसलिये उन्होंने उस आदमी को किसो बहिन द्वारा कहला दिया कि यहाँ रात के समय किसो पुरूष का पाना मना है। कल पुवह दिन को पानाइत्यादि ।
__ साध्वीजी ने सोचा कि अब इसे कहीं किसी दूसरी जगह छिपा देना चाहिये। जिससे कल कोई फजिहत का मौका न आवे यह सोच कर साध्वोजी ने हमारे स्थानक का एक बुढ्ढा नोकर था उसको बुलवाया और कहा कि उस छोरी साध्वो का दिमाग कुछ खराब हो गया है इसलिये तुम इसको अभी बड़े स्थानक में चुपचाप ले जायो और वहाँ पर स्थानक की तीसरी
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