Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

Previous | Next

Page 46
________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव भरी दृष्टि का होना स्वाभाविक था। ये साध्वियां हमेशा व्याख्यान सुनने के निमित्त तथा तपस्वी जी आदि साधुनों के वन्दन निमित्त हमारे स्थानक में प्रातो जाती थीं । इनको एक दो चेलियां 'जो छोटी उम्र की थीं उनकी पढ़ाई आदि के बारे में भी मैं कभी कुछ पूछता रहता था । ___ मेरा स्वभाव कुछ संकोचशील होने के कारण वे मुझ से अपने माता पिता आदि के बारे में कुछ पूछती तो मैं उसका जवाब नहीं देता था। उस बड़ी साध्वी ने एक दफा यों हो कहा कि आप तो हमारे गुरू प्राम्नाय के सम्प्रदाय में पूज्यजी बनेंगे इत्यादि । कभी कभी कोई बातें उनसे हो जाया करती थी । उन साध्वी के पास एक नव दीक्षिता किशोरी साध्वी थी, जिसने कोई छह आठ महिने पहिले ही दीक्षा ली थी। वह नव-दोक्षिता किसो ब्राह्मण की विधवा पुत्री थी। उसके पिता के घर में उसको माँ विधवा थी और उसका एक पाठ दस वर्ष का छोटा भाई था। उस बाई का विवाह होने के बाद थोड़े ही दिनों में उसका पति मर गया और वह कोई १५, १६ वर्ष की उम्र में विधवा हो गई । पिता और श्वसुर कुल ग्रामवासो सामान्य निर्धन समझा जाने वाला ब्राह्मण कुटुम्ब था। यजमान वृत्ति से वे अपना निर्वाह किया करते थे । उक्त बाई के विधवा हो जाने पर श्वसुर वाले देवर जेठ उसका तिरस्कार और अवहेलना ग्रादि करते रहे । जिससे वह त्रस्त हो कर अपनी माँ के पास चठो गई प्रोर वहीं उसके पास रहो लगा। कुछ दिनों बाद उक्त साध्वियां उस गांव में वूमता फिरता जा पहुँची। गांव में दस बोस श्रावकों के घर थे और वहां पर साध्वियों का पाना कभी कभी हुआ करता था। इसलिये ग्रामवासी श्रावक जन उन साध्वियों की भक्तिभाव से सेवा उपासना करते रहते थे । साध्वोजी भाई बहिनों को धर्मोपदेश निमित्त कुछ डाल, चौगाई आदि सुनाया करती थी। उक्त ब्राह्मण कुटुम्ब की वे दोनों माँ बेटी भी साध्वो जी के पास, श्राविका बहिनों के साथ पाती जाती रहती थी। साध्वोजो को उक्त ब्राह्मण बाई के साथ आने वाली किशोर वय की विधवा पुत्री के बारे में कुछ जानने को जिज्ञासा हुई । वह किशोरी बाई कुछ स्वरूपवान भी थी । बोल चाल में कुछ चपला भी थी और उसका कंउ भो अच्छा मधुर था । साध्वोजो को जब उसकी स्थिति का कुछ ज्ञान हुआ तो उनके मन में सहज लालसा उत्पन्न हो आई कि यदि यह बाई हमारी शिष्या बन जायें तो इसका भी जन्म सुधर जाएगा और हमको भी एक अच्छो शिष्या मिल जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110