Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 26
________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव सुन रखी थी, परन्तु इसका खुलासा मिलने का कोई सम्भव नहीं हुआ । एक दिन एक श्रावक का लड़का जो शायद स्कूल में ८ वीं कक्षा में पढ़ रहा होगा. वह मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने यों ही उससे पूछा कि तुम क्या करते हो तो उसने कहा कि मैं स्कूल में पढ़ रहा हूँ। मेरे बाप राजकीय किसी कचहरी में नौकरी करते हैं। मैंने पूछा- स्कूल में क्या क्या बातें पढ़ाई जाती हैं तो उसने गणित. इतिहास, भूगोल आदि की कुछ बातें कहीं। लेकिन ये मेरी समझ के बाहर की बातें थी. फिर मैंने यूही जिज्ञासा से पूछा कि स्कूल में तुमको यह कोई बात पढ़ाई गई कि इस धारा नगरी में राजा भोज आदि कब हो गये ? तब उसने कहा कि हमें भूगोल की एक किताब पढ़ाई जातो है जिसमें यह धारा नगरी किसने बसाई और राजा भोज आदि कब हो गये, उसका कुछ वर्णन उसमें दिये गये पाठ में पढ़ा है । मैंने कहा -वह किताब तेरे पास हो तो लाना, में उसको पढ़ना चाहता हूँ। दूसरे दिन भूगोल की वह फटी हुई पुरानी पुस्तक उसने लाकर मुझे दी, उसमें धार और राजा भोज आदि की कुछ ऐतिहासिक बातें लिखी हुई मैंने पढ़ी, मेरे मन में एकदम कोई नये ज्ञान के प्रकाश की किरण झलकने लगी। __उस पाठ में मैंने सर्वप्रथम पढ़ा कि राजा भोज ने धारानगरी में एक बहुत बड़ा विद्यालय बनवाया था। जिसमें हजारों छात्र संस्कृत भाषा पढ़ते थे । उस विद्यालय का नाम सरस्वती मन्दिर था । पीछे से मुसलमानों ने उस सरस्वती मंदिर को तोड़ डाला और उसको एक मस्जिद का रूप दे दिया। धार में यह मस्जिद अब भी विद्यमान है, जिसे लोग अब भी कमाल मौला की मस्जिद के नाम से पहचानते हैं । एक दो दिन बाद वह लडका जब मेरे पास फिर आया तो मैंने पूछा कि तुमने वह कमाल मौला की मस्जिद कभी देखी है ? उसने कहा नहीं महाराज मैंने उसे कभी नहीं देखो । हाँ लोग कहते हैं कि शहर से बाहर अमुक तरफ वह मस्जिद आई हुई है। मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि मैं कभी जाकर उस मस्जिद को देखू । एक दिन मैं तपस्वी जी महाराज के साथ शौच के लिये शहर से बाहर उधर हो चले गये । प्रासपास में काफी झाड़ झंखाड़ खडे थे, उसके बीच में मस्जिद का बड़ो सो पुराना इमारत नजर आई । मैंने तपस्वो जी से कहा महारान चला इस मस्जिद को जाकर देखें । सुनकर पहले तो उन्होंने कहा मस्जिद में जाकर क्या देखना है ? परन्तु मैंने कहा-अभी एक स्कूल को किताब में मैंने पढ़ा कि यह मस्जिद असल में राजा भोज का सरस्वती विद्या मन्दिर हैमुसलमानों ने उसे तोड़ ताड़ कर मस्जिद का रूप दे दिया है। मेरा कुछ प्राग्रह होने से तपस्वी जी बोले-चलो अन्दर देख पावें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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