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स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव
व चतुर्मास के दिनों में वर्षा अधिक होने के कारण धार की उक्त कमाल मौला मस्जिद का मध्यभाग का पुराना गुम्बज टूट पड़ा । उस गुम्बज के टूटने पर उसके अन्दर दीवालों में लगी हई दो तीन पत्थर को बड़ी बड़ी शिलायें जमीन पर आ गिरी। उन शिलानों पर बड़े सुन्दर अक्षरों में कुछ लेख से लिखे हुए थे । जिसको खबर धर के राज्य कर्मचारियों को मिलो तो उन्होंने उसकी सूचना तुरन्त अग्रेजी सरकार के उस महकमें को पहुँचाई, जिस महकमें के अधिकार में उपर के स्टेटों के ऐसे पुराने मकान आदि के निरीक्षण करने का काय था। भारत सरकार द्वारा संगठित जो प्रारक्योलोजिकल डिपार्टमेन्ट कहलाता है-उसके वैस्टर्न सकल का मुख्य कार्यालय पूना में था । अर्थात् उस विभाग का हेड क्वार्टर पूना में था । धार स्टेट द्वारा कमाल मौला की मंस्जिद में उक्त प्रकार से दो तीन बड़े शिला पट्ट जमीन पर गिर पड़े उसकी तहकीकात के लिये पूना के हेड क्वार्टर को सूचना देदी गई।
इस सूचना को प्राप्त कर पूना से डॉ० एस. पार भांडरकर नामक विद्वान उन शिला पट्टों को देखने के लिये धार पाये ।
डॉ. श्रीधर भांडारकर से मिलन और प्राचीन लिपि के ज्ञान को जीजासा का उत्पन्न होना
__डॉक्टर जिनका पूरा नाम श्रीधर रामकृष्ण भांडारकर था-वे संस्कृत के बड़े विद्वान् थे प्रौर उस समय पूना डेकन कॉलेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष थे । पूना के प्रारक्योलोजिकल. वेस्टर्न सर्कल से उनका सम्बन्ध था। यों वे कई वर्षों म उस डिपार्टमेंट के तत्वावधान में वेटन सर्कल में आये हुए भिन्न भिन्न स्थानों में संस्कृत साहित्य को खोज का काम किया करते थे । डिपार्टमेन्ट की ओर से हर वर्ष दो तीन महिने इस कार्य के लिये व्यतीत करना उनको आवश्यक होता था। अनायास वे विभाग को ओर से तहकीकात के लिये धार को उस मस्जिद का निरीक्षण करने वहाँ पहुँचे। वे संस्कृत के विद्वान् तो थे ही और प्राचीन शिला लेखों को लिपि को भी अच्छी तरह पढ़ लेते थे । जब उन्होंने मस्जिद में मिले हुए उन शिला पट्टों को देखा तो वे बहुत आश्चर्य मुग्ध हुए और उन्होंने डिपाटमेन्ट की ओर से उसके फोटो, रबिग्स (छपि। प्रादि लेने का कार्य किया और उन शिला पट्टों की कोई कुछ नुक्सान न पहुँचावें और अच्छी तरह सुरक्षित रखा जाय, इसके लिये स्टेट को उचित प्रबन्ध करने की सूचना दी।
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