Book Title: Meri Jivan Prapanch Katha Author(s): Jinvijay Publisher: Sarvoday Sadhnashram ChittorgadhPage 35
________________ ( २० ) वाले महाजनों के घर भी अच्छी तादाद में हैं । प्रायः ये महाजन उक्त धर्मदासजी की सम्प्रदाय के श्राम्नाय वाले थे, वहाँ पर मोलश्री नाम की एक प्रसिद्ध गली है, जिसमें अच्छा सा बड़ा धर्म स्थानक बना हुआ है । हम लोग उसी धर्मस्थानक में जा कर ठहरे । शायद तपस्वीजी ने उस शहर में पहले दो तीन चतुर्मास किये थे । इसलिये शहर के सब श्रावक जन उनके अच्छे सुपरिचित थे । तपस्वीजी ने साधु मुन्नालालजी को उनके पुत्र वालक मोतीलाल के साथ कोई तोन चार वर्ष पहले उसी इन्दौर में दीक्षा दी थी। तपस्वीजी के साथ मैं उनका नव दीक्षित बाल साधु नये सदस्य के रूप में उस धर्मस्थानक में प्रविष्ठ हुआ । मेरी जोवन प्रपंच कथा इन्दौर बहुत बड़ा शहर है । की भव्यता, विशालता आदि देव कर इन्दौर शहर का वर्णन उस शहर में पुराना राजवाड़ा के नाम से जो भव्य और विशाल राज महल बना हुआ है और वह ६ से ७ मंजिल जितना ऊँचा है । इतनी बड़ी इमारत मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी, जिसे देख देख कर मेरा मन चकित हुआ करता था । उस पुराने राजवाड़ा के पास ही होल्कर महाराजा ने अपना नया राजवाड़ा बनवाया था । जो उस समय नये ढंग के मकानों का एक नमूना समझा जाता था। उसके मैदान में और आसपास रात्रि की रोशनी के लिये गेस की बत्तियां लगी हुई थीं। जिन्हें लाग रात्रि के समय देखने आया करते थे । बिजली का प्रचार शायद उस समय तक नहीं हुआ था । स्थानक के एक भाग में से उस गेस की एक बत्ती दिखाई देती थी जिसको मैंने जिन्दगी में पहली बार देखा । इतना बड़ा शहर मैंने पहले कोई नहीं देखा था । शहर मुझे ग्राश्वर्य युक्त मनोरंजन होता था । Jain Education International रोज प्रातः शौच के लिये हम शहर से बाहर कहीं दूर चले जाते थे और जहाँ हमें शौच क्रिया के लिये शुद्ध भूमि मिल जाती वहीं वह क्रिया कर प्राते । इस निमित्त हम शहर के अन्यान्य भागों में हो कर कभी किधर और कभी किधर, शौच के लिये दूर निकल जाते थे मुझे आसपास का प्रदेश देखने का शौक रहता था । इसीलिये साधुत्रों को प्राग्रह पूर्वक में ऐसे प्रन्यान्य भागों में लें जाने का प्रयत्न करता रहता था । इन्दौर में जब हम थे तब मुसलमानों के मोहर्रम का उत्सव प्रसंग आ गया था । इन्दौ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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