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( १२ )
मेरो जीवन प्रपंच का
मस्जिद का दरवाजा टूटा फूटा था। बीच में बहुत से कटीले झाड़ झखार भी खड़े थे । उनमें से निकल कर मैं मस्जिद के बड़े दालान में जा खड़ा हुआ, तब देखता हूँ कि उसमें सैकड़ों टूटे फूढे पत्थर और मूर्तियों के खण्डित प्राकार अस्त व्यस्त रूप में पड़े हुए थे । कुछ दो तोन पत्थर के पुराने खम्भे खड़े थे, जिन पर कोई यंत्र आदि जैसे खुदे हुए तथा कुछ अक्षर लिखे हुए थे । यों में जैन पुस्तकों को पुरानो लिपि को योड़ा बहुत पढ़ सकता था । लेकिन वे अक्षर तो ऐसी लिपि में थे, जि.का मुझे कोई बोध नहीं था। मस्जिद के दालान में मैंने घूमकर देखा तो नीचे जमीन के फर्म पर ऐसे बहुत से पत्थर के छोटे बड़े टुकड़े दाये हुए थे, जिनमें भो उसी प्रकार के अक्षरों में कई पंक्तियां लिखी हुई देखी ।
. मैं उसे देख दाव कर तपस्वो जी के साथ वापिस स्थानक आ गया। मेरे मन में कुछ ऐसे तक हने लगे कि इन अक्षरों में क्या लिखा होगा ? ये पत्थर ऐसे क्यों यहाँ जमाये गये होंगे-इत्यादि तर्क मन में उठे, पर उनका सम धान पाने का उस समय वहाँ काई साधन नहीं था।
. धार के उस स्थानक के पिछले भाग में, जो खुला बाड़ा था, उसमें बहुत सी बड़े प्राकार की कुछ जैन मूर्तियां पड़ी हुई थी। उनमें से कोई कोई तो तीन तीन चार चार फुट जितनी ऊँची थो कुछ मूर्तियां काले पत्यर की थी। कुछ मूर्तियां श्वेत पत्थर की थी। पर ये सब प्रायः खण्डित थी । पूछने पर मालूम हुआ कि उस स्थानक के नजदीक हो कोई अच्छा पुराना जैन मन्दिर था, जो टूट फट गया और जिसके पत्थर आदि तो लोग उठा उठा कर ले गये और अपने मकानों आदि के बनाने में उनको काम में ले लिया । वे मूर्तियां जो इस मन्दिर में पड़ी हुई थी, उनको कुछ भाइयों ने उठवा कर उस स्थानक के पीछे वाले बाड़े में लाकर रख दी । बहुत वर्षों से ये मूर्तियां यहाँ पड़ी हुई हैं ।
धार में हम लोगों के सम्प्रदाय वाले काफी जैन भाइयों की बस्ती थी। परन्तु मुझे यह नहीं ज्ञात हो सका कि उस नगर में कोई जैन मन्दिर भी है और उसको मानने वाले मन्दिरमार्गी भाइयों के भी कुछ घर हैं। कोई महिना भर हम धार में रहे और फिर वहाँ से बिहार कर दिया । कई गांवों में घूमते फिरते हम रतलाम गये । रतलाम में जैन भाइयों का काफो बड़ा समुदाय रहता है । वहाँ पर एक अच्छा बड़ा पुराना धर्म स्थानक भी है । उस स्थ नक में एक वृद्ध साधु-जिनके साथ दो तीन शिष्य भी थे, कुछ वर्षों से उसी स्थानक में स्थिर-वास होकर रह रहे थे । ये साधु-जिस सम्प्रद.य के तपस्वीजी केशरीमलजी थे- उसी सम्प्रदाय के वे भीर
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