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दशवेकालिक - सूत्र का मूल पाठ कंठस्थ करने को कहा उस समम इस सूत्र की कोई छपी हुई पुस्तक नहीं था । एक सौ डेढ़सो बरस पुरानो हाथ की लिखी हुई पोथो उनके पास थी उसका पहला पन्ना निकाल कर मेरे हाथ में रखा और कहा कि इस पत्र में पहले पहल जो पाँच गाथाएँ लिखी हुई हैं उनको कंठस्थ करो । उन्होंने स्वयं वे पाँच गाथाएँ वोल कर मुझे सुनाई और 'तुप बैठेर इस तरह इन पांच गावात्रों का याद करो' - - ऐसा कहा ।
मेरी जीवन प्रपंत्र कथा
मेरा अक्षर बोध का ज्ञान उस समय ठीक ठीक था जिससे मैं स्वयं उस पत्र में लिखी हुई उन पाँचों गायात्रों का धीरे से पड़ गया और कोई दो घण्टों में एकांत में बैठे हुए मैंने उन पाँचों गाथाओं का कठस्थ कर लिया । मेरा कुछ शब्दोच्चार ठीक था। पहले हो मैंने गुरूविर्य याति श्री देवीसजी के पास इस प्रकार के कुछ जैन स्तोत्र पढे हुए थे जिससे मुझे इन पांच गाथाओं को कठस्थ करने में कोई कठिनाई अनुभव नहीं हुई ।
जिस सूत्र की ये प्रथम पाँच गाथाओं मैंने पढ़ी, उस सूत्र का नाम दशवैकालिक सूत्र है ! जैन साहित्य में अर्थात् जैन - श्रागमों में यह एक छोटा सा महत्व का ग्रागम-ग्रन्थ है । इस आगम ग्रन्थ में कुल मिला कर दस अध्ययन हैं और सब मिला कर जिनका गाया प्रभाग ७०० जितना है। जैन साधु परम्परा के अनुसार जो कोई नव दीक्षित होता है-उसे सबसे पहले यहो श्रागम-ग्रन्थ पठना होता है । उस आगम ग्रन्थ में जैन साधु को जीवन में पालने योग्य सभी मुख्य मुरुष प्रावारों का वर्णन है ।
जिस सम्प्रदाय में मैंने नवीन दीक्षा धारण की, उसमें यह प्रथा मुख्य रूप से प्रचलित थी । अन्य जैन साधु सम्प्रदायों में ऐसा कुछ निश्चित व्यवहार मालूम नहीं देता । श्वेताम्बर-पूर्ति पूजक सम्प्रदाय में नव दोक्षित होने वाले साधु के पठन-पाठन का क्रम अन्य ढंग से है । ऊपर जो च गाथाएं मैंने उस दिन कंटस्थ करली वह दशवैकालिक का उतनी ही गाथाओं वाला छोटा सा प्रथम अध्ययन है । इसका प्रथम वाक्य जो आज भगवान महावोर द्वारा प्रवलित जैन धर्म के अहिंसा, संयम और तप इन तीन मूलभूत सिद्धान्तों का निदेशक है । इसका प्रथम वाक्य 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठम् हिंसा संयम तवो' ऐसा है इसमें सूचित किया गया है- अहिंसा, संयम और तप ये ही धर्म के उत्कृष्ट और मंगलमय तत्व हैं । इन्हीं अहिमा, संयम और तप का आचरण जैन साधु का किस तरह जीवन में पालन करना चाहिये । इसका विस्तार पूर्वक वर्णन इस दशवेकालिक श्रागम ग्रन्थ में किया गया है । अतः यह ग्रागम ग्रन्थ जैन साधु को अवश्य पड़ना चाहिये। मैंने भी तद्नुसार उस दिन से इस सूत्र को पूरा कंठस्थ कर लेने का उपक्रम चालू किया ।
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