________________
महान् शासन-प्रभावक श्रोजिनप्रभसरि
[अगरचन्द नाहटा]
जैन ग्रन्थों में जैन शासन की समय-समय पर महान् बड़े शासन-प्रभावक हो गए हैं जिनके सम्बन्ध में साधारणप्रभावना करने वाले आठ प्रकार के प्रभावक-पुरुषों का तया लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। इसलिए यहां उल्लेख मिलता है । ऐसे प्रभावक पुरुषों के सम्बन्ध में प्रभा- उनका आवश्यक परिचय दिया जा रहा है। वक चरित्रादि महत्वपूर्ण ग्रन्थ रचे गये हैं। आठ प्रकार के वृद्धाचार्य प्रबन्धावली के जिनप्रभसूरि प्रबन्ध में प्राकृत प्रभावक इस प्रकार माने गए हैं -प्रावनिक धर्मकथी,वादी, भाषा में जिनप्रभसूरि का अच्छा विवरण दिया गया है, नैमित्तिक, तपस्वी, विद्यावान्, सिद्ध और कवि । इन उनके अनुसार ये मोहिलवाड़ी लाडनूं के श्रीमाल ताम्बी प्रभावक पुरुषों ने अपने असाधारण प्रभाव से आपत्ति के गोत्रीय श्रावक महाधर के पुत्र रत्नपाल की धर्मपत्नी खेतलसमय जैन शासन की रक्षा की, राजा-महाराजा एवं जनता देवी के कुक्षि से उत्पन्न हुए थे। इनका नाम सुभटपाल को जैन धर्म के प्रतिबोध द्वारा शासन की उन्नति की एवं था। सात-आठ वर्ष की बाल्यावस्था में ही पद्मावती देवी शोभा बढ़ाई। आर्यरक्षित अभयदेवसूरि को प्रावनिक, के विशेष संकेत द्वारा श्री जिनसिंहसूरि ने उनके निवास पादलिप्तसूरि को कवि, विद्याबली और सिद्ध, विजय- स्थान में जाकर सुभटपाल को दीक्षित किया। सूरिजी ने देवसूरि व जीवदेवसूरि को सिद्ध, मल्लवादी वृद्धवादी, और अपनी आयु अल्प ज्ञात कर सं० १३४१ किढवाणानगर में देवसूरि को वादी, बत्पट्टिसूरि, मानतुंगसूरि को कवि, इन्हें आचार्य पद देकर अपने पट्टपर स्थापित कर दिया। सिद्धर्षि को धर्मकथी महेन्द्रसूरि को नैमित्तिक, आचार्य उपदेशसप्ततिका में जिनप्रभसूरि सं० १३३२ में हुए हेमचन्द्र को प्रावचनिक, धर्मकथी औरक वि प्रभावक, लिखा है, यह सम्भवत: जन्म समय होगा। थोड़े ही समय प्रभावक चरित्र की मुनि कल्याणविजयजी की महत्त्वपूर्ण में जिनसिंहसूरिजी ने जो पद्मावतो आराधना की थी वह प्रस्तावना में बतलाया गया है।
उनके शिष्य-जिनप्रभसूरिजी को फलवती हो गई और आप खरतरगच्छ में भी जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, जिन- व्याकरण, कोश, छंद, लक्षण, साहित्य, न्याय, षट्दर्शन, वल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, मणिधारी-जिनचन्द्रसूरि और जिन- मंत्र-तंत्र और जैन दर्शन के महान् विद्वान बन गए। आपके पतिसूरि ने विविध प्रकार से जिन शासन की प्रभावना को रचित विशाल और महत्त्वपूर्ण विविध विषयक साहित्य से है। जिनपतिसूरि के पट्टधर जिनेश्वरसूरि के दो महान् पट्ट- यह भलो-भांति स्पष्ट है। अन्य गच्छीय और खरतरगच्छ धर हुए-जिनप्रबोधसूरि तो ओसवाल और जिनसिंहसूरि की रुद्रपल्लोय शाखा के विद्वानों को आपने अध्ययन कराया श्रीमाल संघ में विशेष धर्म-प्रचार करते रहे। इसलिए एवं उनके ग्रन्थों का संशोधन किया। इन दो आचार्यों से खरतरगच्छ की दो शाखाएं अलग हो असाधारण विद्वत्ता के साथ-साथ पद्मावतीदेवी के गई। जिनसिंहसूरि की शाखा का नाम खरतर आचार्य सान्निध्य द्वारा आपने बहुत से चमत्कार दिखाये हैं जिनका प्रसिद्ध हो गया, उनके शिष्य एवं पट्टधर जिनप्रभसूरि वहुत वर्णन खरतरगच्छ पट्टावलियों से भी अधिक तपागच्छीय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org