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प्राचीन ताडपत्रीय प्रतियों की संख्या को दृष्टि से मल्लवादी की व्याख्या की प्राचीन ओर शुद्ध प्रति भी पाटण के भडार बढ़े-चढ़े हैं पर जैसलमेर के भण्डारों में कई यहीं है । आगम साहित्य में दशवकालिक की अगस्त्यसिंह ऐसी विशेषताए हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं हैं। जिनभद्रसूरि स्थविर की चूर्णि भी यहाँ है जो अन्य किसी भी ज्ञानभंडार ज्ञान भडार में जिनभद्रगणि क्षमायमण के विशेषावश्यक में नहीं है। पादलिप्तसूरि के ज्योतिष करण्डक टीका की महाभाष्य को प्राचीनतम ताडपत्रीय प्रति नौंवीं दसवीं अन्यत्र अप्राप्त प्राचीन प्रति भी इसी भंडार में है। जयदेव शताब्दो का है। इतना प्राचीनतम और कोई भी प्रति के छंद शास्त्र और उस पर लिखी हुई टोका तथा कइसिट्ट किसी भी जैनभण्डार में नहीं है। अतः यह प्रति इस भंडार सटीक छंद ग्रंथ भी यहीं है। वक्रोक्तिजीवित और प्राकृत के गौरव की अभिवृद्धि करती है। प्राचीन लिपियों के का अलङ्कारदर्पण, रुद्रट काव्यालंकार, काव्यप्रकाश की अभ्यास की दृष्टि से भी प्राचीन प्रतियों का विशेष सोमेश्वर की अभिधावृत्ति, मातृका, महामात्य अम्बादास महत्त्व है।
की काव्यकल्पलता और संकेत पर की पल्लवशेष व्याख्या ___ ताड़पत्रीय प्राचीन प्रतियों के अतिरिक्त कागज पर को सम्पूर्ण प्रति भी इसी भण्डार में सुरक्षित है। इस लिखी हुई विक्रम सं० १२४६-१२७८ आदि को प्रतियाँ प्रकार यह ग्रन्थ-भण्डार साम्प्रदायिक दृष्टि से ही नहीं विशष महत्वपूर्ण हैं। अब तक जैन ज्ञानभण्डारों में कागज व्यापक दृष्टि से भी बड़े महत्व का है। यहाँ के ग्रन्थों के पर लिखी हुई इतनी प्राचीन प्रतियाँ कहीं नहीं मिलीं। अन्त में लिखी पुष्पिकाए भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इस प्रकार यह ज्ञानभण्डार साहित्य संशोधन को दृष्टि से दृष्टि से बड़े महत्त्व की हैं। इनमें से कई प्रशस्तियों और अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
पुष्पिकाओं में प्राचीन ग्राम-नगरों का उल्लेख है जैसे मल्ल___ व्याकरण, प्राचीन काव्य, कोश, छंद, अलंकार, धारी हेमचन्द्र की भव-भावनाप्रकरण को स्वोपज्ञ टोका साहित्य, नाटक आदि विषयों की अलभ्य विशाल सामग्री सं० १२४० की लिखी हई है उसमें पादरा, वासद आदि यहां है। केवल जैन ग्रन्थों की दृष्टि से ही नहीं वैदिक और गांवों का उल्लेख है। इस तरह अनेक ऐतिहासिक और बौद्ध साहित्य संशोधन के लिए भी यहां अपार और अपूर्व सांस्कृतिक सामग्री जेसलमेर के ज्ञानभण्डारों में भरी पड़ी सामग्री है। बौद्ध दार्शनिक तत्व-संग्रह ग्रन्थ को बारहवीं है, इसीलिए देश-विदेश के जन-जेनेतर विद्वानों के लिए ये के उत्तराई की प्रति यहां है. उसकी टीका और धर्मोत्तर पर आकर्षण केन्द्र हैं।
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