________________
( १५ ] क्लिष्ट शब्दों द्वारा विद्वत्ता प्रदर्शन से दूर रहे। आप आपने जैनमन्दिरों, दादावाड़ियों और गुरु चरणसंस्कृत भाषा के प्रखर विद्वान और आशुकवि थे। सं० मूर्तियों की अनेक स्थानों में प्रतिष्ठाए करवायी। आपके १९७० में खरतरगच्छ पट्टावली की रचना आपने १७४५ उपदेश से अनेक मन्दिरों का नवनिर्माण व जीर्णोद्धार श्लोकों में की। सं० १९७२ में कल्पसूत्रटीका रची । नवपद हआ। सं० १९७३ में पणासली में जिनालय की प्रतिष्ठा स्तुति, दादासाहब के स्तोत्र, दीक्षाविधि, योगोद्वहन विधि कराई। सं० २०१३ में कच्छ मांडवी की दादावाड़ी का आदि की रचना आपने १९७७-७६ में की। सं० १६६० माघबदि २ के दिन शिलारोपण कराया । सं० २०१४ में में श्रीपालचरित्र रचा।
निर्माण कार्य सम्पन्न होने पर श्रीजिनदत्तसूरि मन्दिर की सं० १९६२ में हमारा युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठा करवायी और धर्मनाथ स्वामी के मन्दिर के पास ग्रन्थ प्रकाशित होते ही तदनुसार १२१२ श्लोक और छः खरतर गच्छोपाश्रय में श्रीजिनरत्नसूरिजी की मूर्ति प्रतिष्ठित सर्गो में संस्कृत काव्य रच डाला। सं० १९८० में करवायी। सं. २०१६ में कच्छ-भुज की दादावाड़ी में आपने जेसलमेर चातुर्मास में वहाँ के ज्ञानभंडार से कितने सं० हेमचन्द भाई के बनवाये हुए जिनालय में संभवनाथ ही प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपियां की थीं। सं० १९६६ भगवान आदि जिनबिम्बों की अञ्जनशलाका करवायी। में ६३३ पद्यों में श्रीजिनकुशलसूरि चरित्र, सं० १६९८ में और भी अनेक स्थानों में गुरुमहाराज और श्रीजिनरत्नसूरि २०१ श्लोकों में मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि चरित्र एवं जी के साथ प्रतिष्ठादि शासनोन्नायक कार्यों में बराबर सं० २००५ में ४६८ श्लोकमय श्रीजिनदत्तसूरि चरित्र भाग लेते रहे । काव्य की रचना की।
___ ढाई हजार वर्ष प्राचीन कच्छ देश के सुप्रसिद्ध भद्रेश्वर ____सं० २०११ में श्री जिनरत्नसूरि चरित्र, सं० २०१२ तीर्थ में आपके उपदेश से श्रीजिनदत्तसूरिजी आदि गुरुदेवों में श्रीजिनयश:सूरि चरित्र, सं० २०१४ में श्रीजिनऋद्धि का भव्य गुरु मन्दिर निर्मित हुआ। जिसको प्रतिष्ठा आपके सूरि चरित्र, सं० २०१५ में श्री मोहनलालजी महाराज स्वर्गवास के पश्चात बडे समारोह पूर्वक गणिवर्य श्रीप्रेमका जोवन चरित्र श्लोकबद्ध लिखा । इस प्रकार आपने मनिजी व श्रीजयानन्दमुनिजी के करकमलों से सं० २०२६ नौ ऐतिहासिक काव्यों के रचने का अभूतपूर्व कार्य किया। बैशाख सुदि १० को सम्पन्न हुई। इनके अतिरिक्त आपने सं० २००१ में आत्म-भावना, सं. २००५ में द्वादश पर्व कथा, चैत्यवन्दन चौबीसी, बीस
उपाध्याय श्रीलब्धिमुनिजी महाराज बाल-ब्रह्मचारो, स्थानक चैत्यवन्दन, स्तुतियाँ और पांचपर्व-स्तुतियों की भी उदारचेता, निरभिमानी, शान्त-दान्त और सरलप्रकृति के रचना की। सं० २००७ में संस्कृत श्लोकबद्ध सुसढ चरित्र
दिग्गज विद्वान थे। वे ६५ वर्ष पर्यन्त उत्कृष्ट संयम का निर्माण व २००८ में सिद्धाचलजी के १०८ खमासमण साधना करके ८८ वर्ष की आयु में सं० २०२३ में कच्छ भी श्लोकबद्ध बनाये।
के मोटा आसंबिया गाँव में स्वर्ग सिधारे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org