Book Title: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi

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Page 191
________________ होतो फिर सूखी दवा ले सकता हूं। दो तीन महीने दवा सुव्यवस्था की, सूची बनाई । आप जो काम स्वयं कर ली भी, पर कोई फायदा नहीं हुआ। तब श्रीप्रतापमलजी सकते थे, दूसरों से न हो करवाते थे। श्रावक समाज का सेठिया और अरचतलाल शिवलाल ने बम्बई से एक कुशल थोड़ा-सा भी पैसा बरबाद न हो और साध्वाचार में तनिक वैद्य को भेजा। पर अशाता वेदनीय कर्मोदय से कोई भी भी दूषण न लगे इसका आप पूर्ण ध्यान रखते थे। अनेक दवा लागू नहीं पड़ी। आप अपने शिष्यों को हित की ग्रन्थों का सम्पादन एवं संशोधन बड़े परिश्रम पूर्वक शिक्षा देते रहते थे। शिष्यों ने कहा कि कल्प सूत्र के गुजराती आपने किया था। खरतरगच्छ गुर्वावली के हिंदी अनुअनुवाद का मद्रण अधरा पड़ा है। उसे कौन पूरा करेगा? वाद का संशोधन-कार्य जब आपको सौंपा गया तब ग्रन्थ प्रत्युत्तर में आपने कहा- इसको चिन्ता मत करो, जहां के शब्द व भाव को ठीक से समझ कर पंक्ति पंक्ति का तक वह पूरा नहीं होगा, मेरी मृत्यु नहीं होगी। आपका संशोधन किया। आपके सम्पादित एवं संशोधित ग्रन्थों दृढ़ निश्चय और भविष्यवाणी सफल हुई और आपके स्वर्ग- में प्रश्नोत्तरमञ्जरी, पिंडविशुद्धि, नवतत्व संवेदन, चातुर्मावास के दो-तीन दिन पहले ही कल्पसूत्र छप कर आ गया सिक व्याख्यान पद्धति, प्रतिक्रमण हेतुगर्भ, कल्पसूत्र संस्कृत और उसे दिखाने पर आपने उसे मस्तक से लगाया, ऐसी टीका, आत्मप्रबोध, पुष्पमाला लघुवृत्ति आदि प्राकृतआपकी अपूर्व ज्ञान-भक्ति थी। संस्कृत ग्रन्थों का तथा जिनकुशलसूरि, मणिधारी जिन___ श्रावण सुदी पंचमी से आपकी तबियत ओर भी चन्द्रसूरि, युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि आदि ग्रन्थों के गुजराती बिगड़ने लगो पर आप पूर्ण शांति के साथ उत्तराध्ययन, व्ययन, अनुवाद के संशोधन में आपने काफी श्रम किया। सूत्रपदमावती सज्झाय, प्रभंजना व पंचभावना की सज्झाय कृतांग सूत्र भाग १-२ द्वादशपर्वकथा के अतिरिक्त जयसोआदि सुनते रहते थे। सप्तमी के दिन आपका शरीर मोपाध्याय के प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक का सम्पादन ठंडा पड़ने लगा। उस समय भी आपने कहा- मुझे एवं गुजराती अनुवाद बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस अन्य जल्दी प्रतिक्रमण कराओ। प्रतिक्रमण के बाद नवकार के सम्पादन के द्वारा आपने खरतरगच्छ की महान् सेवा मंत्र की अखण्ड धुन चालू हो गयी। सबसे क्षमापना की है। आपने और भी कई छोटे मोटे ग्रन्थों का सम्पाकर ली। दूसरे दिन साढ़े तीन बजे आपने कहा मुझे दन एवं संशोधन नाम और यश की कामना रहित होकर बैठाओ ! पर एक मिनट से अधिक न बैठ सके और नवकार किया। ऐसे महान मुनिवर्य का अभाव बहुत ही खटकता मन्त्र का स्मरण करते हुए श्रावण शुक्ल अष्टमी पाश्वनाथ है। श्री जयानंदमनिजी आदि आपके शिष्यों से भी आशा मोक्ष कल्याणक के दिन स्वर्गवासो हो गये। है, अपने गुरुदेव का अनुकरण कर गच्छ एवं शासन को ___ आप एक विरल विभूति थे। आपके चारित्र की सेवा करने का प्रयत्न करेंगे। की प्रशंसा स्वगच्छ और परगच्छ के सभी लोग मुक्त कण्ठ स्वर्गीय गणिवर्य को श्रीमदेवचन्द्रजी की रचनाओं से करते थे। ज्ञानोपासना भी आपकी निरन्तर चलती के स्वाध्याय एवं प्रचार में विशेष रुचि थी। कई वर्ष रहती थी। एक मिनट का समय भी व्यर्थ खोना आपको पूर्व श्रीमद् देवचन्द्रजी को अप्रसिद्ध रचनाओं का संकलन करके एक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी। जिस रहस्य बहुत ही अखरता था। साध्वोचित क्रियाकलाप करने को श्रीमद् देवचन्दजी ने अपूर्व शैली द्वारा प्रकाशितकिया है, के अतिरिक्त जो भी समय बचता था; आप ज्ञान सेवा में पूज्य बुद्धिमुनिजी का जीवन बहुत कुछ उन्हीं आदर्शों से लगाते थे। इसीलिए आपने कई ज्ञानभन्डारों की ओतप्रोत था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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